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सुखदेव मिश्र सुनते हैं, इसके समाप्त होते ही उस बालक के शरीर में। प्रास-संचार हो पाया। एक बार डोडियासेरा के राम मईनसिंह बीमार हुए। बीमारी यहाँ तक बढ़ी कि जीने की श्राशा न रही। उन समय सुखदेवजी अमेठी में थे। इसलिए यहाँ से उनको साने के लिए श्रादमी गये । मित्रजी आये तो नहीं. परंतु जी लोग उनकी दुलाने गये थे उनसे उन्होंने कह दिया कि क्यपि राय मर्दनर्मिद की हालत यहुन जुर्ग तथापि मरेंगे महीं। यह कदर उन्होंने दो सस्कृत श्लोक मौर एक रही सचेया उनको दिया। मोया यह था- अरि-मडल फोरि पते परिक पर-फाजल फारि के नापिये है। यटु सत्यफ द प्रयध बनाय धर्म जम रायरो भारिये ॥ अकुलाने कदा मादा से रस धीनाने तुम चाहैि । रघुनायक राम की नाई नुह जा में दिये जग राखियो। कोई कि जय पप र सामरियागंग मारे मिह नियमाशगंगा पिनारे या । सुखदेवजी की सारी गिरि मनमित को उनका गुना दो साल