मुत्रदेव मिश्र पाया न था, इसलिए उन्होंने राप पर कोए प्रदर्शन न करके उनसे सतापराध को क्षमा कर दिया। तव से रार मर्दनसिंह उनकी बहुत ही प्रज्जत करने लगे। उनके लिए एक स्थान उन्होंने अपनी राजधानी में बना दिया । वहीं सुनवजी रहने और पूजा पाठ तथा कायालाप में अपने समय का सत्यय करने लगे। दाहियात्रा में कवियों का रखा थाटर था । यहाँ राजाश्रय में रहकर तीर्थराज-नामक एक कधि ने संस्थत. समरतार का हिंदी अनुवाद पिया । यद ज्योतिष का प्रध है, इसमें युद्ध विषय है। सुपरजी के शिष्य गंभुनाय मिपाठी भी पटुन दिनों तक हादियारा में रहे 7। उन्होंने पैताल-पविशतिफा का भापातर विनर किया और मुधितामलि का हिंदी पर में 1 हारे नामनिवासनामा क मा को चना की। माहिशास्त्र में मुगपतीय जितने किन गयौ उसलाय र परवीगर हुए गंगापटीमा ग में अलपि, साय में देर परि नया में मायाव काanter भाप में मान लिया परियामा । Artile for simi पोकीमोगरा
पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/७९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।