RE सुखदेव मिश्र ले लिया था । रार मर्दनसिंह के अनिम यशस राम गमवश हुए । उन्दाने, अमान्य, १८५७ ईसवी में, अगरेजों से प्रतिकुलता फी और वाणी हो गये। श्मशा फल यह गुना कि उनकी रियासन अगरेजी गरमटर फोपानल में भम्म हो गई, और, अंत में पफ जाक, घमर में, उनको फाँसी हुई। इस समय इनकी रामाणी के डार्ग में गीदड़ों, भेख्यिा और तोमटिया यादि अमंगल जानवरों का निष्कंटक राय है। पकमर में सुगमजी को स्यानि प्रतिदिन पढ़ने सगी! यात यादमी उ7फे शिप्प गये । उनको प्रामा और रिताई जय राय मामिद ने सुनी गय उगयो भी असे मिलने की उमठा पुर । मिरार पे प्रस पहिये भी उनके शिष्य हो गई। यहां भी परीक्षा में नानि हो , मी पुटी में मागास पीपा युयारी गदगो शीपर मुग्योपसी पी गया सौर परिनयां पारती शीशियोकिमी का nt कप पान पि , पy frifr पामा तिपद गुमारिकाधी-सा foreign पाग ग्लो font मोगमmgar T , T eriomamart Frani Times
पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/७७
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