८६ प्राचीन पंडित और कवि में असोथर एक सवा है। वहाँ पर, उस समय, भगवतराय खीची-नामक एक राजा था। वह बड़ा गुगाग्राही था। उसी के यहाँ सुखदेवजी रहे। सुखदेवजी के गुणों पर वह राजा इतना लुब्ध हो गया कि उनका शिष्य होकर वह सेवक बन गया। वहाँ सुसदेवजी का बड़ा सम्मान हुआ। भाउस साहब ने फतेहपुर गजेटियर के परिशिष्ट में भगवत राय खोची का हाल लिखा है। यह स्य कवि था। कई पुस्तके उसने लिखी थीं। परंतु अब उनका कुछ पता नहीं। भगवंतराय ने बहुत वर्षों तक बादशाह को मालगुजार। नहीं दी। पद स्वतत्र हो गया था और दो एक बार बादशाही फौजों को उसने परास्त भी किया था। परतु १७६० ईसया में वह दगा से मारा गया। सुखदेवजी शाक्त थे। वे तारा के उपासक थे। यंत्र द्वारा उसकी वे विधि पूर्वक पूजा अर्चा किया करते थे। इस प्रकार की पूजा में मद्य-मास की भी श्रावश्यकता होनी है, अतएर यह सामग्री भी सुखदेवजी को इकट्टी करना पड़ती थी । यह बात लोगों ने भगवतराय से कह दी। श्राश्चर्य हुअा। ऐसे विद्वान्, ऐसे पडित और ऐसे अच्छे कधि की पूजन सामग्री में मद्य-मांस ! उसका इस बात पर विश्वास न हुश्रा । इसलिए उसने खुद इसका -सत्यता अथवा असन्यता की जॉच करनी चाही। एक दिन, जिस समय उसके श्रादमियों ने उसे सदर दाकि
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प्राचीन पंडित और कवि