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प्राचीन पंडित और कवि

८४ प्राचीन पडित और कवि उन्होंने उस ज्योति को भक्तिभाव-पूर्वक प्रणाम किया और अपना पाठ याद करके सो रहे । दूसरे दिन प्रात काल जव वे फिर अपना पाठ लेने लगे तब उन्होंने पढते समय बहुत कुछ प्रगल्भता दिखाई और बुद्धिमानी से भरे हुए अनेक प्रश्न करने श्रारभ किये। उनका यह बुद्धिमाखर्य देखकर उनके अध्यापक महात्मा को आश्चर्य हुश्रा । उन्होंने सुखदेवजी से इस लक्षण्य का कारण पूछा। तब उन्होंने रात की बात बतलाई | इस पर संन्यासी ने कहा कि अब आपको पढ़ने में अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं। आपको श्रय विद्या प्राप्त हो गई समझिए । प्रथावलोकन-मात्र आपके लिए अव दरकार है। इस घटना के अनतर सुखदेवजी अपने उस विद्यागुरु संन्यासी से शीव्रता पूर्वक प्रयारलोकन करने लगे और थोड़े ही दिनों में तत्र और साहित्यशास्त्र में निपणात हो गये। यह वात सुरादेवजी के वशजों को परपरा से मालूम होती चली आई है। वे एक सिद्ध पुरुष और महात्मा थे यह बात उनके अनेक अलोकिक कृत्यों से भी प्रकट होता है। पर इसका निश्चय नहीं किया जा सकता कि यह कर की बात है। न तो मुसदेवजी के जन्म-मरण का समय। ज्ञात है और न यही ज्ञात है कि कय वे बनारस गये का कितने दिनों तक वहाँ रहे। परंतु जिन राजाओं और त. ल्लुनदारों के यहाँ वे रहे उनके समय का विचार करने से