सुसदेव मित्र "गा हरिश्चंद्र का कविवचनामुत्रा भी एक सर्व- प्रिय प्रथ है। उसमें पारस वर्णन के पद्यों का संग्रह अम्नु । मुखदेवजी की जन्मभूमि, गंगा के किनारे, "कपिलमुनि की यसाई" कपिलानामक नगरी है। घे पान्यकुब्ज ब्राह्मगा, हिमकर के मिश्र, थे। विवाह उनका कंपिला हो म हुया । जगनाथ और बुलाकीराम दो पुत्र भी उनके यही रुप । लटकपन में उहोंने मामूली तौर पर मस्कृत का थोड़ा-सा अभ्यास किया। जय ये यो धुप और दो पुत्र भी उनके हो चुके तर जो कुछ उदोंने पढ़ा लिया था या उन्हें काफी न मालम या । उनके हस्य में अधिक विपापान की इच्छा उत्पन्न हुई। पतिए ये पगारम गये। पर्दा पर पिनो विदान सन्यासी से सारा पदने लगे। छ काल तक पढ़े परिध्रग मे निपापयन करने और गत-रात भर अध्ययन निमान गहने सो। नत, सपने मापापक संन्यासी को ही मान पर गले थे। पक पार रात को घात देर नफ अपने पार पारिकाने । उन पापही मयामी महामोगले ममर रितिकाममा जागरगा। सम्पानीजी पानीमा पो ATTR गया भर मनोवा से निरनी ar पिन की योनि पसार
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