प्राचीन पंडित और कवि इसके आगे रामायण की आख्यायिका प्रारभ होती है। दूसरे, तीसरे और चौथे सर्ग में दशरथ और उनके यम का वर्णन है । पॉचचे और छठे सर्ग में रामजन्म ओर उनकी, चाल्य-लीला है। विश्वामित्र का श्रागमन, यज्ञ-रक्षा, ताडका वध, अहल्या उद्धार, धनुष-भंग, विवाह और परशुराम लगाद का वर्णन सातचे और आठवें सर्ग में है । अगले' ६ सगों में वनवास, सीता-हरण, राम और सुग्रीव की मित्रता, वालिबध और सीता की खोज श्रादि के संबंध की समस्त कथायें है। यहाँ तक की कथा ११५ पत्रों में पूरी हुई है। श्रागे के पन्ने नहीं मिलते । पर, भागे, तीन फुटकर ( १२६ १०६, १४०) पन्नों को देखने से मालूम होता है कि कथा अधूरी नहीं छोड़ी गई। ___ मधुरवाणी ने इस ग्रथ में अपनी काव्यमधुरता का अच्छा परिचय दिया है। वास्तव में उसका असली नाम यह न था । यह तो केवल गुण विशिष्ट उपनाम मात्र था, जैसा निम्नलिखित श्लोक से मालूम होता है- चतुरमधुरवाणी सम्यगाफर्ण्य यस्या- स्सदसि मधुरवाणी वाम दत्तं त्वयैर । सरसरुतिविधाया साधुमेधाविशेपा. स्वधिकपटरशेपास्वम्वजाशीपु सैपा ॥ यह उपनाम उसे राजा रघुनाथ का दिया हुआ था। यह कैसी चिदुपी और कला-कुशल थी, और उसका
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प्राचीन पंडित और कवि