७२ प्राचीन पडित और कवि (६) भास्कर दीक्षित-श्रात्मपरीक्षा आदि का कर्ता। गजा रघुनाथ स्वयं संस्कृत और तैलंगी भाषा के अनेक ग्रंथों का कर्ता था। उसके संस्कृत के मुरय मुख्य प्रथ (१) पारिजात-हरण (२)नलाभ्युदय (३) अच्युताभ्युद्ध (४) रामायण-सार-सग्रह, (५) महाभारत-सार-सग्रह। इन के सिवा एक रामायण भी उसने तैलगी भाषा में लिखी थी। राजा रघुनाथ नायक एक दिन अपने दरबार में दरवारी स्त्रियों से घिरा हुश्रा बैठा था। उनमें से एक ने उसकी रची हुई आंध्र-भाषा की रामायण से कुछ ऽलोक गाकर सुनाये। दूसरी ने उसकी राम-भक्ति की प्रशसा की। इससे उसके मन में जो विचार उत्पन्न हुए वे मधुरवाणी के निम्न लिखित श्लोकों में वर्णित है- हरेश्चरित्र हु तत्र रामकथासुधा कर्णरसायन न. । आम्वाद्यमानाऽपि सहस्रवारमयातयामैव सुखस्य दोग्धी। रसोत्तरं रामकथानुवन्धि काय मया करिपतमाभ्रवाण्या। कार्य कया संस्कृतवाग्भिरेतदित्येवचित्ते गणयन्निवासीत् ।। भावार्थ-रामचरित हजार चार सुनने से भी तृप्ति नहीं होती। मैने श्रांत-भाषा में राम का जो चरित गान किया है उसे कौन सी सस्कृत में लिख सकती है। __ यही सोचते हुए राजा दरवार से उठ गया। उसी रात फो भगवान रामचंद्र ने म्यान में दर्शन टेफर उससे कहा-
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प्राचीन पंडित और कवि