६५ यौद्धाचार्य शीलभद्र में दाका छोड़कर अाप मगध पाये। उस समय महापडित धर्मपाल नालद विद्वहन थे। यही नहाँ में सबसे श्रेष्ठ प्राचार्य थे। शीलभद्र के बुद्धिमानय ने उनको मोहित कर लिया। थोड़े ही समय में शीलमद ने प्रान विद्यागुरु के विद्या भाडार को प्रण करके अपने हृदय, घट धार जिला के अर्पण कर दिया। इसके बछ समय बाद दक्षिण से पक पडिनराज मगर नरेश की सभा में आये। उन्होंने प्राचार्य धर्मपाल का सामार्थ के लिए तलकारा । धर्मपाल सभा में शुलाये गये, पर दतदेव ने गुरु की शारत्रार्थ करने जाने में रोका। मेरे रहते मेरे गुरु से शास्त्रार्थ पदसंघह पडित मुझ पराम्ल कर ले, तष मेरे गुरुदेव का मुकाबला करे। अन्यथा यह नहीं हो सकता। धर्मपाल भरने मग्गिय की योग्यता से अब्छी तरह परिचित थे। उन्होंने कहा- ____ मिशिस्नु" ... "गा । परमादेश से और भया । गला या मा प्रापयपदतर दिदा मायाकामि. पलाकर मना! पद नारदा मामन ! म भाटालों का सहीन मा को मामला re। पर उमंग मालाममाभान or fema m arr
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