बौद्धाचार्य शीलभद्र "डान" नामक अँगरेजी मासिक पुस्तक में गीलम पर एक लेख प्रकाशित हुश्रा दे। उसे पढ़ने से शीलमद्रका सक्षिप्त वृत्तात मालूम हो सकता है। शीलभद्र छठी शताब्दी में थे। नालंद विश्वविद्यालय केचे अध्यक्ष थे। भारतवर्ष भर में उस समय कोई भी शास्त्रश विद्वान उनका समकक्ष न था। ये यही शीलमट है जिनके पैरों पर प्रसिद्ध चीनी यासो हेनमाग ने अपना मस्तक रक्खा थााये पूर्वी घंगाल में रहनेवाले थे। दात जिले के रामपाल-गाँय में इनका जन्म हुआ था। यह गौर उम ममर समनट-राज्य की राजधानी था । पालवशी राजाओं के पहले पदों प्रामा-यमी राजाधों का गज्रपा । गोलन का जम राजघश में माथा । यदि राज्याधिकारी या मे ये अपना देश न रोदने मो, पहा ममा था, उन्हें राजासन प्रा हो जाता । परंतु राज्यात की मात्रा विधामामिदी को उन्होंने श्रेष्ट सममा | RT या पमा किया धर्म नि मायये समार हुप । उस समय नालंदही पौडॉग पर भंर शिपालपगा। उममें १५१० मा गे और जोजार Aarl विधायन करने । म मय मापापको माला गी माशीममद्र अधिष्ठिमण पर Tar मनमामा-मामी भर RATRIधित र
पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/५७
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