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प्राचीन पंडित और कवि
प्राचीन पंडित और कवि । धी-चेल धन-नागरमोया धान्य-धनियाँ विश्व-साँठ अर्थात्, जिसको अतीसार नहीं है उसे इन श्रोधियों के होने से कोई लाभ नहीं । इनके काढ़े मे श्रीसार जाता रहता है। एक छोटा-सा कूट श्लोक सुनिए- रावणस्य सुतो हन्यात् मुखारिजधारित । श्वसन कसनं चापि तमिवानिलनन्दन ॥ अर्थात्, मुखकमल में रखने से रावण का लड़का, श्वास और खॉसी दोनों का वैसे ही नाश करता है जैसे उसका (रावण के लडके का) नाश परनसुत ने किया था। हनूमान् के हाथ से मारे जानेवाले रावण के लड़के का नाम अक्ष था। अक्ष बहेड़े को कहते हैं। श्रयात् चरे को मुंह न रखने से श्वास और खॉमी जाती रहती है। लोलिपराज को एक पहिलापिका सुनाकर हम इस व्यापार से विरत होंगे- मिन्दन्ति के पुखरसर्गपालि किमव्यय पति रते नवोढा। सम्बोधन नु किनु रक्षपित्त निहल्लियामोस पद त्वमेव !!