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लोलियराज लोय यनानेवाले को .०५ श्लोक लिपी में कितना धम हो सकता हे ? यह पात लालिग को पटुत यथार्थ है कि जिमे नाहित्य शास्त्र का मान नहीं मह कवि के कर्तव्य को बच्ची तरह नहीं जान सफता। श्रीपठचरित में लिया है- दिना न साहित्यन्दिा परम गुण यजत् प्रपने फीनाम | मालम्यते सल्यणमम्मानीय । चिम्नारम यम न तलग्.ि ॥ अर्थात, साहित्य शास्त्र के गाना पिना, ए.पियों गुण परछी तरह नहीं पिस्तार पाने । नेस फर द पानी ही पर फलना। मोगियराज पी उपमा पान की। पापिये बहन नदी, नापि मोटीनी फि उन फाग दानी यही हा उशिरा में गिरी हो जाना। 37ी पारी उपमा प्रार मार-रगामी गम यो पप मुनिए- पदामा अगानि irruariffari ! पधा माता frat ममा पारmainान भीम mmitTrinा, दाद nar mmm EAT