लोलिपराज , में रस अवश्य होता है। नीरस फपिता करिता ही नहीं। सोलिपराज ने पद्यजीवन में ठीक कहा है- यतो न नारसा भाति कविताकुलफामिनी । अर्थात, पविता-रूपिणी कुल-कामिनी नीरस होने से शीमा नहीं पाती। पोलियराज के ग्रयों में पेयजीन सबसे श्रेष्ठ है। यद्यपि इसफारिपय यंधक है, तथापि इसे फायदा फहना चाहिए। इसमें फान्य के प्रायः समी लक्षण विधमान है। कोई लोक सा नजिसमें गोलियराज ने कोई-न-कोई मनोरंजक उति न पही हो। इसमें उदोंने अपनी अच्छी फपिन्य शक्ति दिपा । पाती के स्तन पान भरने का प्रभाय यदि की दलिदोगा तो सोच में दशिन होता है। दमा in गुमशाली या सेगुना है कि पंजीयन में पाही गा शोपियां मी सय प्राय: भन भराएर अपर्य। उपमें सो फाप, सुनाई, मिना सपा व दिगारंना नेम प्रकोतिराम ने अपगोत्री यायमा पो मोधन पाया और हिनाशिमी इमाफ में उगाने wati In दिगिय अधिकारिक गापामरामान पोरामा पापही पर, जानि मागि, पदी rurn. पही in hin, पी. गोHिIT NEmaitrini
पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/४१
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