प्राचीन पडित और कवि का उदय हुआ है। श्रर्थात् वे कोई चार पाँच सौ * वर्य के इधर ही हुए है। भोज के समय लोलियराज का होना, बिना किसी दृढ़ ऐतिहासिक प्रमाण के, नहीं माना जा सकता। लोलिवराज ने जिन सुर्य और हरिहर राजाओं
- महाजनमडल नामक गुजराती पुस्तक के कर्ता ने लोलिंबराज का
होना शक १७५५ अर्थात् १६३४ ईसवी के लगभग माना है। इससे हमारे कथन की पुष्टि होती है । इस पुस्तक में लिखा है कि लोलिंगराज जुन्नर के निनासी थे। यह नगर दक्षिण में पूना जिले में है । परतु ये सब बातें निराधार लिखी गई हैं । इनका कोई प्रमाण इस पुस्तक में नहीं । लोलिंगराज के तपस्या करने और अपने शरीर का मास होमन श्रादि के विपय में भी इसमें प्राय यही बातें लिसी है जो हमने रिखी हैं। इस पुस्तक में इतना अधिक लिखा है कि लोलिंगराज की स्मा रखकला "बादशाह' की सड़की थी। बादशाह ने लोबिराज से पूग कि हमारी गर्भवती रानी के लडका होगा या लडकी। पूछने के समय बादशाह की युग कन्या उनके पास सडी थी। उसे देखकर लोलियराज ने कहा कि मेरा उत्तर ठीक निकलने पर यदि आप मुझे यह कन्या देना स्वीकार कर तो मैं श्रापके प्रश्न का उत्तर बतला दु । बादशाह ने यह बात अगीकार कर ली । लोटिंबराज ने कहा, थापकी रानी के पुत्र होगा। पुत्र ही हुश्रा और वह कन्या लोरियराज को मिल गई। उसके साथ उन्होंने विवाह किया और उसका नाम रत्नकला रक्सा । यदि यह बात सत्य है नो रोलिंबराज भी हमारे पडितराज जगनाथ राय के साथी हुए। परतु महाजनमडल के कर्ता ने इन बातों का कोई प्रमाण नहीं दिया । यह भी नहीं लिखा कि वह "बादशाह" कौन था शोर कहाँ का था। यादशाह की युवा लडकी का एक अपरिचित के सामने, अपन पिता के पास, सदा रहना हमें तो सभर नहीं जान पड़ता।