प्राचीन पंडिन और कवि यह श्लोक अपह्न ति अलंकार का एक बहुत अच्छा उदा हरण है, परंतु इतने से लोलिवराज को भोज का सम कालीन बतलाता युक्तिसंगन नहीं। हम नहीं कह सकते कि यह पद्य किस लोलिंब से सबंध रखता है, वैद्यजीधन आदि के कर्ता लोलिवराज से, अथवा इस नाम के और किसी दुसरे कधि से। फिर इसका भी क्या प्रमाण कि किसी ने भोज के अनतर उनके और लोलिपराज के नाम से यह श्लोक नहीं बना डाला १ चरलाल-मिश्र के संकलित किये हुए भोजप्रबंध को जब हम देखते हैं तब वहाँ कालिदास, भारवि, भवभूति, माघ, मरिलनाथ, श्रीहर्ष श्रादि सभी कवियों की उक्तियाँ भोज के विषय में पाई जाती हैं। जिन कवियों का वहाँ नाम पाया है उनमें परस्पर सैकड़ों वर्ष का अंतर है। इसीलिए ऐसे श्लोकों से ऐतिहासिक तत्व का पता लगाना कठिन है । फिर, मोज एक विद्वान् राजा था, वह कवियों को श्रादर की दृष्टि से देखता था। श्रतएव यह कहना कि उसने लोलिंवराज को हूँ की उपमा दी, मानों उसके सिर पर अरसिकता और असभ्यता का मुकुट रखना है। लोलिपराज की कविता में श्राधुनिकता के चिह्न पाये जाते है । उनमें से फारसी के शब्द "सुलतान" और "पाद- शाह" बड़े ही जाज्वल्यमान चिह्न है । ऊपर एक श्लोक दिया जा चुका है जिसमें तोलिवराज ने "मुलतान" शब्द का
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