लोलिंबराज कीन था, कय हुआ, कहा रहा और कौन-कौन ग्रंथ उसने लिये । परतु इन बातों का उत्तर देने में प्राय. इत-सफल होना पटता है । यह गेद को पात हे; परंतु क्या किया जाय, यश नहीं। किमी-किसी यिरले विद्वान को छोड़कर औरों ने अपने प्रथों में, अपने विषय में, कुछ लिसा दी नहीं । श्रीर, लिसा भी दे तो बहुत थोड़ा । जिसने पुछ लिगा भी है उसने अपने लेस में एसी अत्युक्तियाँ कही है, और उम लेस को कयितारूपी येष्टन से इतना लपेटाई, कि उसमें से ऐतिहासिक तर दफालना यदा कठिन काम है। लोलिपराज भी उपर्युक्त दोष से नहीं पचे । घे अपने प्रधों में अपने लिए पहने है- "एमने अपनी अंधा का माम अग्नि में रन परक पार्यती फो प्रमान दिया। पानी दिनको दूर पिलापा। दम एक पड़ी में १०० मा यता माने हैं। इस परियों को नारफ म परियों के पाद गारिया जामयालादी गगामा रासायों को सजा कम भूगर।" ___ पाप न मानी गंगा में शामिना, पानु पर मनिपार प हुए, पय , प्रार का-बान प्राम। Are पाहुनान प्रधान Firm. nitr frien I r e FINITI मी पापोm
पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/२९
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