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भवभूति पदनेवाले स्थालोपुलाफ न्याय से मूल और अनुवाद का अंतर सममा जायगे- अपनी ससी लरंगिका के घोसे माधर का आलिंगन फरले, अनंतर उसे पहचान, जब उससे मालती घट गई। नव माधय कहता है- पकोतस्वचि निषितः स्वारपीटय निर्मुग्नपीनकुमलयाऽनया में। परहारदरिचन्दनचन्द्रफात निम्य दर्शनलमृणालदिमादियर्ग ॥ मापार्यभान पान-पयोधर-कपी मुकुलों को धारणा फरनेवाली इस मानती ने, कपूर हार, परिचंदन, चंद्रकांत- मगि पन (सियार), मृणाल और दिम धादि शीतल पायों को पीभूत पर, उन्हें पकत्र निचोड़, मेरी त्वचापर गां ग्य का लेप-सा लगा दिया। इसका अनुधार मुनिए- जानुपर चंदन रस पोरी, दिरपत सा गुनार निचोरी; उमर(!)गोपि पापनि, पपूर साहिएगापति। गन भरा , मुसा मोगर Emmarस पो!ि Tir हो पिपरमो मानिया में दिन, Pomfreeममा शिपाय iirsini timm