भवभूति पर जोड-सा दिया गया है। ये यह भी कहते हैं कि कपाल- कुटला के द्वारा मालती का हरण किया जाना करि ने देवल इमलिये दिखाया है, जिससे पियोगियों की दशा का वर्णन करने के लिये उसे अवसर मिले। डॉक्टर भांडारकर ने और भी दो-एक यात, शास्त्रीजी के मत के प्रतिकूल, कहीं हैं। डॉक्टर साहब के यतलाप हुप दोष ऐसे है जोसामा य जना के ध्यान नहीं पा सकने । नाटर शास्त्र के प्राचार्यों की दृष्टि में ऊपर कही बातें चाहे भले ही सदोष हो, परंतु हम, म विषय में, यह अवश्य कहेंगे कि भवभूति का किया श्रा जमशान वर्णन अद्वितीय है। बीमत्म रम का ऐसा मच्छा उदाहरण मस्हन के और नाटकों या काम्यों में हमने नदी देवा । भएभृति का विप्रलभ-वर्णन भी एक अद्भुत यातु है। अतपय भयभूनि के ये दोष यदि दोप कहे जा सकते हैं मोक्षम्य है। यदि यह इन उपर्युक बातों को मालतीमाव में निकाल डालता, तोहम धीमत्म और पियोगगार के भाषिक रम से परिप्नुन उपकी अनूटी पिता मे भी पथिग रहने । पंडित माधवराय यन्टेशल मे भयभूतिक बरबादकों को ममानोत्रमा मराटी में की मार अनेक दोर दिसनार, परतु मतोट में निरुध में हम नगर समविचार नहीं माने। पारने शासनाने मारण माति मे मी पर l for पागु भार में बनिन
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