१० प्राचीन पडित और कवि नामक शंकर का मंदिर था । जनरल कनिहम और पंडित वामन-शिवराम आपटे का मत है कि ग्वालियर राज्य के अतर्गत मालवा-प्रांत का नरवर-नगर हो प्राचीन पद्मावती है। नरवर सिंघ( प्राचीन सिंधु)-नदी पर बसा है, और उसके पास ही पार्वती (प्राचीन पारा), लोन (प्राचीन लवणा ) और मधुवर(प्राचीन मधुमती )-नदियाँ बहती है । यह पहचान जॅचती तो ठीक है, परंतु पारा और सिंधु के संगम से नरवर कोई २५ मील है। इसी से डॉस्टर भाडारकर कहते हैं कि नरवर से हटकर, कहीं दूसरे स्थान पर, पद्मावती रही होगी। विक्रमादित्य के समय से ही और प्रांतों की अपेक्षा मालवा-प्रात ने विद्या चुद्धि में विशेष ख्याति प्राप्त की थी। इसी से राजमत्रियों तक के लड़के विदर्भ देश से पद्मारती में श्रान्वीक्षिकी-विद्या(न्याय शास्त्र) पढने श्राते थे। संभव है, विदर्भ से कान्यकुब्ज जाते समय, अथवा काश्मीर से लौटते समय, भवभूति पद्मावती ही के मार्ग से गया हो, और उस नगर की तथा उसके निकट बहनेवाली नदियों को शोभा प्रत्यक्ष देसफर मालतीमाधव में उनका वर्णन उसने किया हो। पमावती में विद्या की विशेष चर्चा थो, अतएर भवभूति का वहाँ जाना कोई आश्चर्य को पाट नहीं। शिष शास्त्री चिपलूणकर ने अपने निवध में यह बात सिद्ध की है कि जैसे एक ही अर्थ के व्यंजक पृथक पृथक पध
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प्राचीन पंडित और कवि