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भवभूति चतुर्थ अक के अत में माधर से उसका सना मरद कहता है-"नदुत्तिष्ठ पारासिधुसम्भेटमगाध नगरीमेर प्रवि. शाव -" जिससे विदित हाना है कि पागोर सिंधु नाम की दो नदियों के संगम पर पमारती नगरी बसी थी । इस बात को कवि ने नयम क के प्रारम में पुनरपि पुष्ट किया है। वहाँ उसने लिया है- पभावतीविमलपारिविशालसिन्धुः पारामरिस्परिकरच्छन्ननो पिमति उमाधमुरमन्दिरगोपुराह- मंघपाटितविमुक्तमिवान्तरिक्षम् सैपाधिमाति लयमा ललितोम्मिपति- रमागमे जनपदप्रमदाय यम्या' गोगनिगनियनयोपलमालभारि सेयोपकटारिपिनासल विभान्नि ari पा लगानदी का भी नाम माग, जिसमें नित जोगामि . पाम ही मामा मी पानी थी। जो सर में, दूर भागे, "अरx मधुमलिभुपामा भगा Rधानी पतिनाति गुणविभिपाता।" सह मी लामा तापत मधुमो मार मी और उमामि गुमर