पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/११८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१३२
प्राचीन पंडित और कवि

१३० माचीन पडित और कवि ___ईश्वरकृष्ण के साथ दिट नाग का विरोध सुनते हैं, जिस समय दिनाग प्रमाण-समुच्चय का पहला श्लोक बनाया उस समय भीपण भूकंप हुश्रा । आन. देश प्रकाश-पुज से चारों तरफ समुज्वल हो उठा और सय कहीं कोलाहल मच गया। इसके अनंतर एक दिन ईश्वरकृष्ण नामक एक ब्राह्मण दार्शनिक दिङ्नाग के शैल- विहार में पाया। उस समय दिनाग विहार में न थे । दिड नाग-लिखित प्रमाण-समुच्चय का पहला श्लोक जो इश्वरकृष्ण की दृष्टि में पड़ा तो वे उसे फाड़कर चलते बने । दिड्नाग ने आश्रम में लौटकर देखा तो श्लोक नदारद । श्रतएव उन्होंने उसे फिर लिसा । ईश्वरकृष्ण ने दुवारा श्राफर उस श्लोक को फिर नष्ट कर दिया। तीसरी दफे दिनाग ने फिर भी उसे लिपिबद्ध किया। इस दफे उपद्रव- कारी को सावधान करने के लिए, श्लोक के नीचे, उन्होंने इस आशय का एक लेख लिख दिया-"हम नम्रता पूर्वक निवेदन करते है, कोई इस श्लोक को, सेल के बहाने भी, नष्ट न करे। अर्थगाभीर्य में यह श्लोक अतुलनीय है। इस श्लोक के भाव-सबंध में यदि कोई हमारे साथ विवाद करना चाहे तो वह हमारे सामने उपस्थित हो। हमारी अनु पस्थिति में उसे कापुरुपता न करनी चाहिए।" दिङ्नाग चौद्ध भिक्षु थे 1 नियमानुसार भिक्षा के लिए उन्हें रोज़ बाहर नगर में जाना पड़ता था। ऐसे हो समय 14