आचार्य दिनाग खान का प्रयत्न करना पड़ा। दिनाग सचमुच ही पीर पुरुष थे। उनमें असामान्य मनोपल और दैहिक तेज था। यदि ऐमा न होता तो अनेक दिशाओं से किये गये तो आघात सहन करको ये इनो समर तक फीजीन रहने । दिइनाग को प्रय भारत से लुर हो चुके है । नेपाल में भी घे रक्षित नहीं, किंतु पृथ्वी से एकदम ही लुप्तप्राय नहीं हुए । तिम्चत में दिनाग को य या पूर्वक मुनिन । दिन नाग फा प्रापिभांग-कार । अनुमान यर है कि ५०० मी में दिनात जापित । उनपं. गुम भाचार्य पमुधु ०ी में धिमान थे। दिमाग को दो था पा समुराइ, ५५७ ५६१ मधी में, चीनी भाषा में सुधा। जिस समर बांध-देश में विनाग का प्रादुर्माण हुआ, जार पर उमा ममप दक्षिण में पक्षनयंतीय नरेगा का प्राधिया । पसगीय नरेनों में से मारकाम नरेश गौस धार अगामी । दिमाग का प्रमाण गराएर विनात पापं प्रान प्रमा-गुजरा समप मादेशी गरी पारा निन पर रही। जमी Trikrunा नेशीमा म मा पर जिन winnini कागद HTRA माम प्रमाबगर |
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