श्राचार्य दिड्नाग महामहोपाध्याय डॉक्टर सतीशचंद्र विद्याभूपण, एम्० ५०, पी० एच डी०, का लिखा हुश्रा-चौद्धन्याय-नामक एक लेख चंगीय साहित्य परिपत्पत्रिका में प्रकाशित हुना है। उसमें अनेक बौद्ध विद्वानों और उनके न्याय प्रथा का उल्लेख है। श्राचार्य दिइनाग का भी संक्षिप्त वृत्तांत उसमें है। यह विशेष मनोरजक है और महत्त्वपूर्ण भी है। अतएव उसका श्राशय नोवे लिखा जाता है- दिइ नाग का जीवनचरित दिड्नाग असाधारण नैयायिक थे। दक्षिण में काची- नगरी के पास सिंहवक-नमक गॉच में उनका जन्म हुना। वे जन्म से ब्राह्मण थे। बौद्ध धर्म में दीक्षित होकर नागदच. नामक बौद्ध गुरु के ये शिप्य हुए। नागदत्त वात्सी-पुत्रीय नामक हीनयान संप्रदाय के अंतर्गत थे । इस संप्रदाय के धर्म-प्रथ त्रिपिटक का अच्छी तरह अध्ययन करके दिट्नाग ने महायान-संप्रदाय में प्रवेश करने की चेष्टा की। श्रतएन प्राचार्य सुवधु के वे शिष्य हुए । उनसे महायान सप्रदाय के सारे बौद्ध ग्रथ उन्हाने पढे । महायान विद्या की अधिष्ठात्री देवी का नाम मंजुश्री है।
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