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, हीरविजय सुरि को लोट गये। चार महीने, मार्ग में, धाप सिरोदो रहे । २५८७ मे वे पाटन पहुंचे। इधर शांतिचर ने प्रकार की तारीफ म रुपारसकोश नाम की एक पुस्तक नाइ। उसमें उसने अकरा के योदार्य ओर फारण्य-दर्शक सारे मसार्यों का उल्लेख किया। इस पुस्तक को शातिन के मुख से सुराकर अकयर को थटुन सर या। श्रनपत, पाटन म दीरविजय का दर्शन करने के अभिप्राय से शांतिचंद जतापुर से विदा होने लगे तब प्रकार ने अपने दिमा प्रतिसपस फरमान की एक फापी उनके हाथ में दी । उसम उसने पदिमा यो समय की अवधि को और मी या दिया और जज़िया-नामक कर उठा दिये जाने का भी टुपम दिया-- उपरता शुगि मशिनिमादधे नतिरेप तनुपकर स्यार। मनमुत्रहो म काकी उधार मे पत पड़ी मानिनिय बिलार NT, पले शाप मानाना विद्वान आरपार में है। भानुचंद्र मिलिनामा Trय गा मंगTraiटोमानियाnirn अनिमा मे mix i ! गिन ने मामma