श्रीरङ्गपत्तन बहुत प्राचीन नगर है। इस समय वह प्रायः उजाड़ पड़ा है। परन्तु एक समय वह विशेष वैभवशाली था। जिस समय वहाँ हैदर अली और टीपू की राजधानी थी उस समय उसमे अनेक ऐसी बाते हुई हैं जिन्होने दक्षिण के इतिहास के सैकड़ों पृष्ठो को व्याप्त कर लिया है।
श्रीरङ्गपत्तन माइसोर-राज्य में है। वहाँ जाने के दो मार्ग हैं। एक जबलपुर या इटारसी होकर मन्माड़, धोंड, होटगी, रायचूर, आरकोनम, और बँगलोर के रास्ते; दूसरा होटगी से सीधे बँगलोर के रास्ते। पीछेवाला मार्ग सीधा है, परन्तु इधर से जाने मे होटगी से छोटी पटरी की रेलवे लाइन होकर जाना पड़ता है। इसलिए जानेवाला देर से पहुँचता है।
कावेरी नदी में एक छोटा सा द्वीप है । श्रीरङ्गपत्तन उसके
पश्चिमी किनारे पर है। उसकी आबादी इस समय कोई
१५,००० है। वहाँ श्रीरङ्गजी का एक मन्दिर है। उसी के
नाम पर इसका नाम श्रीरङ्गपत्तन पड़ा है। इस मन्दिर में
विष्णु की मूर्ति है। यह मन्दिर बहुत प्राचीन है। श्रीरङ्ग-
पत्तन से यह बहुत पहले का है। प्राचीन होने के कारण इसमे
स्थापित मूर्ति का नाम आदि-रङ्ग है। यह मन्दिर किले के
भीतर है। किवदन्ती है कि गौतम मुनि ने इस मन्दिर मे