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ओड्कार-मान्धाता

मान्धाता में श्रीङ्कारजी का प्रसिद्ध मन्दिर है। उसकी गिनती शिव के द्वादश लिङ्गो में है। दूर-दूर से लोग वहाँ यात्रा के लिए आते हैं। ओङ्कारजी का मन्दिर बहुत प्राचीन नही; परन्तु उसके विशाल पाये बहुत पुराने हैं। वे किसी दूसरे मन्दिर के हैं। उसके भग्न हो जाने पर ये स्तम्भ इस मन्दिर में लगाये गये हैं। पुरातत्त्व के पण्डितों का अनुमान ऐसा ही है। इस मन्दिर में एक विचित्रता है। इसमे जो शिवलिङ्ग है वह दरवाज़े के सामने नही है। इससे वह सामने से देख नहीं पड़ता। वह गर्भ-गृह के एक तरफ है। इस कारण, बरामदे के सबसे दूरवर्ती कोने पर गये बिना, लिङ्ग के दर्शन बाहर से नहीं हो सकते।

मान्धाता में पहाड़ की चोटी पर सिद्धनाथ अथवा सिद्धेश्वर का एक मन्दिर है। वह सबसे अधिक पुराना है। परन्तु वह, इस समय, उजाड़ दशा में पड़ा हुआ है । वह एक ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है। उसके पायों को, चारों तरफ, पत्थर के बड़े- बड़े हाथो थामे हुए हैं। उनमे से दो हाथी नागपुर के अजायब- घर मे पहुँच गये हैं। वहॉ, दरवाजे पर खड़े हुए, वे चौकीदारी का काम कर रहे हैं। इस मन्दिर का गर्भ-गृह अब तक बना हुआ है। उसमे चार दरवाज़े हैं। शिखर गिर गया है। ओसारे की छत भी गिर गई है। जो भाग इस मन्दिर का शेष है उस पर बहुत अच्छा काम है। जिस समय यह मन्दिर अच्छी दशा में रहा होगा उस समय इसकी शोभा वर्णन करने लायक रही होगी।