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देवगढ़ की पुरानी इमारतें


वहाँ पर इस समय भी विद्यमान हैं, उन्हीने निर्माण कराये। परन्तु इन बातों का कोई अच्छा प्रमाण नहीं मिलता।

पुरानी इमारतों के लिए देवगढ़ बहुत मशहूर है। दूर- दूर तक उसके खेडहर चले गये हैं। इस समय वहाँ पर जो एक छोटा सा गॉव है वह पहाड़ी के नीचे है। वहीं पर गुप्तवंशी राजों का एक, और बुंदेलो का एक-ऐसे दो- मन्दिर हैं। एक तालाब भी वहाँ है। प्राचीन किला और शहर के भग्नावशेष पहाड़ी के ऊपर हैं। उसके दक्षिण-पश्चिम भाग में वेत्रवती (बेतवा ) बड़े वेग से बहती है। जब हम लोग पहाड़ो के नीचे के अवलोकनीय स्थान देख चुके तब, ऊपर, पहाड़ी पर चढ़ने का इरादा हुआ। इसलिए पाँच-सात सहरिया पहले से ऊपर भेज दिये गये। उन्होने बढ़ी हुई झाड़ियों को काट-छाँटकर, किसी तरह, चलने लायक रास्ता बनाया। फिर उन्होंने “हॉका," किया, जिसमे मन्दिरों के भीतर छिपे हुए जङ्गली जानवर यदि हो तो निकल जायें। इसके बाद हम लोगों ने पहाड़ो पर चढ़ना शुरू किया। मार्ग बड़ा बीहड़ था। कॉटेदार झाड़ियों इतनी धनी थी कि बड़े कष्ट से हम लोग भीतर पहुँच सके। जङ्गल के भीतर हम लोगों ने अनेक प्राचीन मन्दिरों और मूर्तियों को देखा और जिस बली काल ने उन सबको उजाडकर इस दशा को पहुंचाया उसे बार बार धिक्कारा। हमारे सामने ही कई खरगोश और भेड़िये आहट पाकर उनके भीतर से