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प्राचीन चिह्न


मृतङ्ग महादेव अथवा मृत्युजय का मन्दिर सम-चतुष्कोण है। भीतर से वह २४ वर्ग फुट है और बाहर से ३५ । उसके भीतर शिव का जो लिङ्ग है वह ८ फुट ऊँचा है। मुटाई उसकी ३ .फुट ८ इञ्च है। इसमे न तो कोई शिलालेख ही है और न किसी मिस्त्री या यात्रो का कोई नाम ही है। मरम्मत करने में बाहर से इस पर इतना गाढ़ा चूना पोत दिया गया है कि उसका भीतरी दृश्य बिलकुल छिप गया है। इससे यह नही विदित होता कि चूने के नीचे कुछ काम था या नहीं और था तो कैसा था। इसके शिखर पर एक चमकीला कलश है, जिसे महाराजा छत्रपुर ने लगवाया है।

उत्तरी-समूह में जितने मन्दिर हैं उनमे से वामनजी का मन्दिर सबसे बड़ा है। उसकी लम्बाई ६० फुट और चौड़ाई ३८ फुट है। मन्दिरों के बाहर की तरफ़ इसमे दो पॉते मूर्तियों की हैं। गिनती में वे कोई ३०० के लगभग होंगी। इसके भीतर वामन की भी मूर्ति है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश की भी मूर्तियाँ हैं। इस मन्दिर मे यह विशेषता है कि इसमें जो काम है वह कई प्रकार का है; एक नमूने का नहीं है, अनेक नमूने का है और उत्तम है। यह मन्दिर भी दसवी या ग्यारहवी शताब्दी का जान पड़ता है।

दक्षिण-पूर्वी समूह में एक मन्दिर बौद्धो का और ६ जैनों । के हैं। उनमें से एक जैन मन्दिर बहुत बड़ा है। वह जिन. नाथ के नाम से प्रसिद्ध है। उसके द्वार के एक ओर एक