जान पड़ता है कि यह लिङ्ग पहले ही का है। जिस समय
मन्दिर की प्रतिष्ठा हुई थी उसी समय उसकी भी स्थापना हुई
थी। इस मन्दिर के बनानेवाले कारीगरों ने “कुटिल," अक्षरो में अपने नाम खोद दिये हैं। उनसे अनुमान होता है कि यह मन्दिर दसवी शताब्दी का है।
कनिहाम साहब एक मन्दिर का नाम “छत्रकीपत्र" बत-
लाते हैं और कहते हैं कि उनको इसका मतलब समझ नही
पड़ा । शायद यह चित्रगुप्त का मन्दिर हो। परन्तु और
बातों से मालूम होता है कि यह सूर्य का मन्दिर है । गर्भ-
गृह के द्वार पर इसमें सूर्य की तीन प्रतिमाये हैं और भीतर
५ फुट ऊँची सूर्य की एक बहुत ही बड़ी प्रतिमा है। उसके
दोनों हाथो में कमल के फूल हैं। मूर्ति के नीचे. आधार
में, सूर्य के सात घोड़े भी बने हुए हैं। इसके अर्द्ध-मण्डप
और महामण्डप का बहुत कुछ भाग गिर पड़ा है। इसके
खम्भों वगैरह में, कही-कही पर, काम पूरा नही हुआ । इससे
जान पड़ता है कि बनवानेवाले के इच्छानुसार काम होने
के पहले ही उसे, किसी कारण से, छोड़ देना पड़ा। ' इससे
भी मन्दिर की बाहरी तरफ अश्लील मूर्तियों की तीन पॉते
हैं। परन्तु अश्लीलता की मात्रा इनमे कम है। ब्रह्मा, सर-
स्वती, शिव, पार्वती, विष्णु, लक्ष्मी और वराह आदि की जो
मूर्तियाँ इस मन्दिर मे हैं वे बिलकुल अश्लीलता-रहित हैं और
देखने लायक हैं। इसमे कोई शिलालेख नही। परन्तु