का शब्द जोड़ दिया है। परन्तु इस “उजाड़ कजरी" में
फाल्गुन के महीने में, शिवरात्रि को, अब भी लाखों आदमी
इकट्ठे होते हैं। वहाँ उस समय एक बहुत बडा मेला लगता
है और दो-तीन कोस तक आदमी ही आदमी नज़र आते हैं ।
खजुराहो. इस समय, एक छोटा सा गाव है। उसमे
कोई दो सौ घर है और एक हजार आदमी के लगभग रहते
है। जजातिया ब्राह्मण अधिक हैं, चन्देल-राजपूत कम ।
वहाँ के राजपूत अपने को पृथ्वीराज के प्रतिम्पर्धी परमाल
( परमर्दि देव ) के वंशज बतलाते है। वहाँ खजूर-सागर नाम
का एक बड़ा तालाब है। उसी के दक्षिण-पूर्व कोने पर यह
गॉव है। गाँव के चारों तरफ की भूमि मन्दिरो और मन्दिरों
के भग्नावशिष्ट भागों से घिरी हुई है। ये इमारते तीन जगहों
पर अधिक है——पश्चिम की तरफ़, उत्तर की तरफ़ और दक्षिण-
पूर्व की तरफ़। कुछ मन्दिर करार नामक नाले के तट पर
भी हैं। यह नाला गाँव से कोई मील भर है। ये टूटे और
बे-टूटे मन्दिर दूर-दूर तक चले गये हैं। इन इमारतो के
फैलाव के देखने से, ह्वेन सांग का लिखा हुआ, खजुराहो
का, विस्तार ठीक जान पड़ता है। सातवे शतक मे इस परि-
ब्राजक ने खजुराहो को अच्छी दशा मे देखा था। उसके
लिखे हुए तत्कालीन इमारतो के वर्णन से यह सिद्ध है कि कम
से कम ईसा की पहली सदी मे खजुराहो अस्तित्व मे था। अर्थात्
खजुराहो के कोई-कोई खंडहर दो हज़ार वर्ष के पुराने हैं।