पढ़ा जोता था। पर ईसापुर के इस यूप-लेख की सहायता से उसका भी उद्धार हो गया और यह स्पष्ट विदित हो गया कि
कनिष्क के सदृश वाशिष्क भी प्रतापी राजा था और उसका
राज्य सॉची तक फैला हुआ था।
भाषा की दृष्टि से भी ईसापुर का यूप-लेख बड़े महत्त्व का
है। वह कोई अठारह-उन्नीस सौ वर्ष का पुराना है। उसकी
भाषा विशुद्ध संस्कृत है। उसमे जो दो एक छोटी-छोटी
अशुद्धियाँ हैं वे, सम्भव है, खोदनेवाले की असावधानता से
हो गई हों। कुशानवंशीय नरेशो के शासन-समय के अन्तर्गत
पूर्व-कालीन शिलालेख प्राकृत मिली हुई संस्कृत भाषा में और
उत्तर-कालीन शिलालेख संस्कृत मिली हुई प्राकृत भाषा ही में
अब तक मिले हैं। अर्थात् पहले प्रकार के लेखो में संस्कृत
अधिक है, प्राकृत कम, और दूसरे प्रकार के लेखो में प्राकृत
अधिक है, संस्कृत कम । मतलब यह कि उस ज़माने में प्राकृत
का प्राबल्य हो रहा था और संस्कृत का नैर्बल्य । मौर्य और
शुगवंशीय राजों के राजत्व-काल में तो प्राकृत ही का सार्व-
देशिक प्रचार हो गया था। इस कारण उस समय के प्रायः
सभी शिलालेख प्राकृत ही में मिले हैं। संस्कृत का प्रचारा-
धिक्य तो गुप्तवंश के राजो के समय मे हुआ। इसी से उत्तरी
भारत में उस समय के जितने लेख मिले हैं सब संस्कृत में हैं।
इस दशा में ईसापुर के यूप-स्तम्भ का भी लेख प्राकृत मिली
संस्कृत में होना चाहिए था। पर है वह प्रायः विशुद्ध संस्कृत