पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/१५

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साँची के पुराने स्तूप

उखड़ गया है। पलस्तर पर रङ्गीन चित्रों की एक अनुपम चित्रावली जरूर रही होगी; यह लोगो का अनुमान है। घेरे मे जो पत्थर के लम्बे-लम्बे टुकड़े ( रेल ) हैं उन पर उनके बनवानेवालों के नाम खुदे हुए हैं। इससे जान पड़ता है कि स्तूप के चारों ओर जो घेरा है वह पोछे से, क्रम-क्रम से, बना है। इस घेरे के बन जाने पर फाटक और फाटकों पर तोरण बने हैं। स्तूप के दक्षिणी और पश्चिमी तोरण गिर पड़े थे। १८८२-८३ ईसवी मे अगरेजी गवर्नमेट ने उनकी मरम्मत करा दी, उत्तरी और पूर्वी फाटकों की फिर से जुड़ाई कराकर मज़बूत करा दिया; और स्तूप के चारों तरफ़ जो घेरा है उसकी भी मरम्मत कराकर जहाँ-जहाँ पर वह टेढा हो गया था वहाँ-वहाँ पर उसे सीधा करा दिया। घेरे, फाटकों और तोरणों मे जितनी मूर्तियाँ थीं सबको साफ़ करा दिया। फाटकों के ऊपर जो तोरण है उन पर, आगे और पीछे दोनों तरफ़ बहुत ही अच्छा काम था। एक चावल भर भी जगह ऐसी न थी जहाँ कोई कारीगरी का काम न हो। इन तारणों पर गौतम बुद्ध का जीवनचरित चित्रित था। उनके जीवन की जितनी मुख्य-मुख्य घटनाये थी वे सब पत्थर पर खोदकर, मूर्तियों के रूप मे, दिखलाई गई थी। अब भी इस चित्रात्मक चरित का बहुत कुछ अंश देखने को मिलता है। इसके सिवा बौद्धों के जातक नामक ग्रन्थो मे बुद्ध के पहले ५०० जन्मो से सम्बन्ध रखनेवाली जो गाथाये हैं उनका भी दृश्य इन तोरणों