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ढ़ाई हजार वर्ष की पुरानी कबरे


बने हुए हैं। इन खापड़ियों में एक यह विचित्रता है कि इनकी शक्ल कुछ-कुछ बन्दरों की खोपड़ियों से मिलती है। ऊपर का हिस्सा तो छोटा है, पर नीचे का जबड़ा बड़ा। हड्डियो को देखने से मालूम होता है कि इन लोगों की उँचाई ५ फुट ४३ इञ्च रही होगी।

इस कबरिस्तान मेंं छः कबरें खोदकर खुली हुई छोड़ दी गई हैं। उनके ऊपर शीशे के घर बना दिये गये हैं। कबरो में पाई गई हड्डियाँ साफ़ करके जैसी की तैसी रख दी गई हैं। किसी कबर में एक ठठरी है, किसी मे दो और किसी मे ज़्यादह ठठरियाँ, बैठी हुई दशा में, हैं। उनके घुटने ऊपर को ठुड्ढी से लगे हुए हैं। एक कबर की हड्डियाँ नीचे पड़ी हुई हैं। कई हड्डियों पर चोट के चिह्न हैं। कुछ हड्डियाँ चिपटी हो गई है। बहुत लोगो का ख़याल है कि उस जमाने में लोग मनुष्यों का बलिदान देते थे। जब कोई दावत या धार्मिक काम होता था तब एक-आध आदमी का बलिदान ज़रूर किया जाता था। उसकी हड्डियाँ तोड़-फोड़कर कबर में गाड़ देते थे। एक कबर के भीतर एक खोपड़ी मिली. जो कई जगह से टूटी है। नाक की हड्डी कटी हुई है। तीन दॉत अपनी जगह से हटकर नीचे के जबड़े में घुस गये हैं। इससे मालूम होता है कि जिस आदमी का बलिदान दिया जाता था वह बुरी तरह से मारा जाता था। उसका सिर पत्थर या किसी और औजार से तोड़ दिया जाता था ।