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पाताल-प्रविष्ट पाम्पियाई नगर

यहाँ पर हम केवल एक ही मकान का थोडा सा हाल लिखकर पाठकों को बताना चाहते हैं कि पाम्पियाई उस समय उन्नति के कितने ऊँचे शिखर पर आरूढ़ था। पाम्पियाई में घुसते ही एक मकान दृष्टिगोचर होता था। उसकी बाहरी दालान रमणीय खम्भों की पंक्ति पर सधी हुई थी। दालान के भीतर घुसने पर एक बड़ा-लम्बा चौड़ा कमरा मिलता था। वह एक प्रकार का कोश-गृह था। उसमे लोग अपना-अपना बहुमूल्य सामान जमा करते थे। वह सामान लोहे और तांबे के सन्दूकों मे रक्खा रहता था। सिपाही चारो तरफ़ पहरा दिया करते थे। रोमन देवताओं की पूजा भी इसी में हुआ करती थी। इस कमरे के बराबर एक और कमरा था। उसमे मेहमान ठहरायें जाते थे। उसी में कचहरी थी। इससे भी बढ़कर एक गोल कमरा था। उसके फर्श मे सङ्ग- मरमर और सङ्गमूसा का पच्चीकारी का काम था। दीवारों पर उत्तमोत्तम चित्र अङ्कित थे। इस कमरे मे पुराने इतिहास और राज्य-सम्बन्धी कागजात रहते थे। यह कमरा बीच से लकड़ी के पर्दो से दो भागों में बँटा हुआ था। दूसरे भाग मे मेहमान लोग भोजन करते थे। इसके बाद देखनेवाला यदि दक्षिण की तरफ़ मुंडता तो एक और बहुत बड़ा सजा हुआ कमरा मिलता। उसमे सोने का प्रबन्ध था। कोचें विछी हुई थी। उन पर तीन-तीन फुट ऊँचे रेशमी गहे पड़े रहते थे। इसी कमरे में, दीवार के किनारे-किनारे,,आल-