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प्राचीन चिह्न


دری منارہ سن سبائی اور صبامیا بی افات برک کھل رہ یفتہ بود۔ باتوفیق ربانی بار کاشیدہ عنایت سبحانی فیروز سلطانی ای مکم را بیاتیات تمام عمارتیں خادک خالق بیچیں می مخم را اج جامعہ افطار مساعون داراد

अक्षरान्तर––

दरी मनारह सन सबई व सबअमाया ब आफ़त बर्क़ ख़लल राह याफ़्ता बूद। बतौफ़ीक रब्बानी बर कशीदा इनायत सुभानी फ़ीरोज़ सुल्तानी ई मुकाम रा बयहतियात तमाम इमारत कर्द ख़ालिक बेचूँ ईं मुकाम रा अज जमीय आफ़ात मसयून दाराद।

भावार्थ––

७७० हिजरी में इस पर बिजली गिरी। फीरोजशाह ने इसकी मरम्मत कराई। ईश्वर इस स्थान को आफ़तों से बचावे।

फ़ीरोज़शाह ने अपना संक्षिप्त जीवनचरित अपने ही हाथ से लिखा है। उसका नाम है "फ़तूहाते फीरोज़शाही"। सर एच॰ यलियट ने अपनी "हिस्टोरियन्स" (Historians) नाम की किताब के तीसरे भाग में उसका पूरा अनुवाद दिया है। इस आत्मचरित में फ़ीरोज़शाह ने एक जगह, इस प्रकार, लिखा है––

و منارہ سلطان معیزالدین سما را کی از ھداسائی برک اپٹڈا بوڈ بیٹر ایز انکی بوونڈ اریزتی قدیمی بلینڈ ٹیر مرمت کاردا شود۔