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प्राचीन चिह्न


नाम, कई जगहो पर, उसकी प्रशंसापूर्ण उपाधियों के साथ, इस पर खुदवाया। यह मीनार कुतुबुद्दीन ही ने बनवाया; इसलिए वह उसी के नाम से प्रसिद्ध है, मुहम्मद विन साम के नाम से नहीं। १८६२-६३ की आरकिरोलाजिकल रिपोर्ट मे जेनरल कनिहम ने जो यह सिद्धान्त निकाला है कि यह स्वतन्त्र मुसलमानी इमारत है, पृथ्वीराज अथवा किसी और की प्राचीन इमारत पर या उसको तोडकर, यह नही बनाई गई, वह बहुत ठीक है। यह मीनार और इसके पास ही कुतुब ,की मसजिद दोनों एक ही समय की इमारते हैं। ये दोनों ५८७ हिजरी अर्थात् ११९१ ईसवी की, अथवा वर्ष छः महीने इधर-उधर की, हैं। और इसी साल, अर्थात् ११९१ ईसवी मे, देहली जीती गई थी। यदि किसी प्राचीन इमारत को तोडकर यह मीनार बनाया जाता तो इस पर भी वैसी ही शेखी से भरे हुए वाक्य पाये जाते जैसे कुतुब की मसजिद पर हैं। कोई कारण नही जान पड़ता कि २७ मन्दिरों को तोड- कर मसजिद बनाने की बात तो लिखी जाय और ऐसे विशाल विजय-स्तम्भ पर, वही की प्राचीन हिन्दू-लाट, मकान या महल के तोड़े जाने की बात न रहे। उस समय, हिन्दुओ के प्राचीन स्थानों को तोड़कर, जो इमारते मुसलमान बादशाह बनवाते थे उन पर, उन प्राचीन स्थानो के जाज्वल्यमान चिह्नो के साथ, उस विषय का लेख भी वे वहाँ खुदवा देते थे। इस बात का प्रमाण, कुतुब की मसजिद के सिवा ढाई दिन के झोपड़े