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प्राचीन चिह्न


रत्न जड़े हुए हैं, जिनकी कीमत कोई एक लाख रुपये से कम न होगी। एक मण्डप हज़ार खम्भे का मण्डप कहलाता है; परन्तु उसमे इस समय केवल ९९० खम्भे हैं। इस मण्डप में ६० कतारें हैं और हर कतार मे सोलह-सोलह खम्भे हैं। प्रत्येक खम्भा १८ फ़ीट ऊँचा है। हर खम्भे में चित्र बने हुए हैं। चित्र सवारों के हैं। मालूम होता है, मानो सवार अपने घोड़ों को आखेट-सम्बन्धी परिश्रम के अभ्यासी बनने की शिक्षा दे रहा है। इसी कोट में, उत्तर की ओर, एक बड़ा गोपुर है, जो १५२ फ़ीट ऊँचा है। इस गोपुर के नीचे, रास्ते में, एक पत्थर है जिस पर कनारी-भाषा में एक लेख खुदा हुआ है। यह गोपुर टूटा-फूटा है। इसके ऊपर दो ही चार आदमी चढ़ने से यह हिलने लगता है।

तीसरे कोट में कोई ख़ास बात नहीं। दूसरे कोट में बहुत सी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं।

पहले अर्थात् सबसे भीतरवाले कोट में श्रीरङ्गजी का मन्दिर है। मन्दिर का कलश सोने का है। श्रीरङ्गजी की मूर्ति एक कोठरी में स्थापित है। कोठरी के पट नियमित समय पर खुलते हैं। उस समय दर्शकों की बड़ी भीड़ रहती है। प्रत्येक वर्ष, जाड़े के दिनों में, वहाँ एक बड़ा मेला लगता है।

अँगरेज़ इजीनियरों का मत है कि यह मन्दिर अठारहवी शताब्दी के आरम्भ में बनाया गया होगा। यह मन्दिर चाहे जब बना हो, पर यह देवस्थान है बहुत पुराना । क्योकि इसका