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thoroughly well determined and directing all his clear headness and iatrigue to the accomplishment of that end.” V. A. Smith लिखते हैं कि : Nor is there any reason to descredit the statements that the userper was attacked by a confederecy of the northern powers, including Kashmere and that the attack failed owing to the maciavellian intrigues of Chandragupta's Brahman advisor, who is variousely named Chanakya " कामंदकीय नीतिसार में लिखा है यस्याभिचारवज्रण वज्रज्वलनतेजसः । पतात मूलतः श्रीमान्सुपर्वानन्दपर्वत. ।। एकाकी मंत्रशान्या यः गक्तः गक्तिधरोपमः । आजहार नृचन्द्राय चन्द्रगुप्ताय मेदिनीम् ॥ नीतिशास्त्रामृतं धीमानर्थशास्त्रमहोदधे । य उद्दधे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे ।। चन्द्रगुप्त का प्रधान सहायक मन्त्री चाणक्य ही था। पर यह ठीक नहीं ज्ञात होता कि वह कहाँ का रहने वाला था जैनियों के इतिहास से बौद्धों के इतिहास को लोग प्रमाणिक मानते हैं। हेमचन्द्र ने जिस भाव से चाणक्य का चित्र अंकित किया है, वह प्रायः अस्वाभाविक घटनाओं से पूर्ण है। जैन-ग्रन्थों और प्रबन्धो में प्रायः मभी को जैनधर्म में किसी-न-किसी प्रकार आश्रय लेते हुए दिखाया गया है। यही बात चन्द्रगुप्त के सम्बन्ध में भी है। श्रवण बेलगोलवाले लेख के द्वाग, जो तिमी नैनमुनि का है, च, गुम न राज छोड़कर यति-धर्म ग्रहण करने का प्रमाण दिया जाना है । अनेक ग्रन्थो ने तो यहां तक कह डाला है कि उसका माथी चाणक्य भी जन था। अर्थशास्त्र के मगलाचरण का प्रमाण देकर यह कहा जाता है कि (नमः शुक्रबृहस्पतिभ्या) ऐमा मंगलाचरण आनार्गो के प्रति कृतज्ञतासूचक वैदिक हिन्दुओं का नही हो सकता; क्योकि वे प्रायः ईश्वर को नमस्कार करते है। किन्तु कामसूत्र के मंगलाचरण के सम्बन्ध मे क्या होगा जिसका मंगलाचरण हे 'नमो धर्मार्थकामेभ्यो।' इनमें भी तो ईश्वर की वन्दना नही की गयी है। तो क्या वास्पायन भी जैन थे। इसलिये यह सब बाते व्यर्थ है । जैनों के अतिरिक्त जिन लोगों का चरित्र उन लोगों ने लिखा है, उसे अद्भुत, कुत्सित और अप्रासागक बना डाला है। स्पष्ट प्रतीत होता है कि कुछ भारतीय चरित्रों को जैन ढांचे मे ढालने का जैन-संस्कृत-साहित्य द्वारा असफल प्रयत्न किया गया है। यहां तक उन लोगों ने लिख डाला है कि मौर्यवंश-चन्द्रगुप्त : ७९