पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५७

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होता है "मौरियानं खत्तियानं वंसजातं सिरीधर । चन्द्रगुत्तो सिपंज्जतं चाणक्को ब्राह्मणोतती।" हिन्दू नाटककार विशाखदत्त ने चन्द्रगुप्त को प्रायः बृषल कहकर सम्बोधित कराया है, इसमे उत्त हिन्दू-काल की. मनोवृत्ति ही ध्वनित होती है। वस्तुतः वृषल शब्द से तो उनका क्षत्रियत्व और मी प्रमाणित होता है क्योंकि शनकस्तु क्रियालोपादिमा क्षत्रियजातयः वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणानामदर्शनात् ! से यही मालूम होता है कि लो क्षत्रिय लोग वैदिक क्रियाओ से उदासीन हो जाते थे, उन्हें धार्मिक दृष्टि से वृषलत्व प्राप्त होता था। वस्तुतः वे जाति से क्षत्रिय थे। स्वयं अशोक मौर्य अपने को क्षत्रिय कहता था। यह प्रवाद भी अधिकता से प्रचलित है कि मौर्य-वंश मुरा नाम की शूद्रा से चला है और चन्द्रगुप्त उसका पुत्र था। यह भी कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य शूद्रा मुरा से उत्पन्न हुआ नन्द ही का पुत्र था। किन्तु V Anith लिखते है"But it is perhaps more probable that the dynsties of Mouryas and Nandu were not connected by blood." तात्पर्य यह कि यह अधिक सम्भव है कि नन्दों और मौर्यो का कोई रक्त-सम्बन्ध न था। Maxmullerst fragrant - The statement of Wilford that Mourya meant in Sanskrit the offspring of a barber and Sudra woman has never been proved " मुरा शूद्रा तक ही नही रही, एक नापित भी आ गया। मौयं शब्द की व्याख्या करने जाकर कैसा भ्रम फैलाया गया है। मुरा से मौर और मौरेय बन सकता है न कि मौर्य । कुछ लोगों का अनुमान है कि शुद्ध शब्द मौरिय है, उससे संस्कृत शब्द मौर्य बना है; परन्तु यह बात ठीक नही, क्योकि अशोक के कुछ ही समय बाद के पतञ्जलि ने स्पष्ट मौर्य शब्द का उल्लेख किया है - "मौहिरण्यार्थिभिरर्चाप्रकल्पिताः" (भाष्य ५,३-९९) । इमीलिये मौर्य शब्द अपने शुद्ध रूप में संस्कृत का है न कि कही से लेकर संस्कार किया गया है। तब तो यह स्पष्ट है कि मौर्य शब्द अपनी संस्कृत-ध्युत्पत्ति के द्वारा मुरा का पुत्र वाला अर्थ नही प्रकट करता। यह वास्तव मे कपोल-कल्पना है और यह भ्रम यूनानी लेखकों से प्रचारित किया गया हैं; जैसा कि ऊपर दिखाया जा चुका है। अर्थ-कथा मे मौर्य शब्द की एक और व्याख्या मिलती है। शाक्य लोगो में आपस में बुद्ध के जीवन-काल मे ही एक झगड़ा हुआ और कुछ लोग हिमवान् के पिप्पिली-कानन प्रदेश में अपना नगर बसाकर रहने लगे। उस नगर के सुन्दर घरो पर क्रौञ्च और मोर पक्षी के चित्र अंकित थे, इमलिये वहाँ के शाक्य लोग मोरिय कहलाये। कुछ सिक्के बिहार मे ऐसे भी मिले हैं, जिन पर मौर्यवंश-चन्द्रगुप्त : ५७