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“प्रसाद" के दर्शन -विनय मोहन शर्मा मन १५.२४ में जब मेन हिन्दू विश्वविद्यालय परिमर म उसी के अंग मेट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिय” रम स हिन्दी विभाग क आचार्य (अध्यक्ष) बाबू श्याम सुन्दर दास थे। और उनका सहयोगी में नाचार्य "मचन्द्र शुक्ल, जिन्हे बाबू माहब ने नागरी प्रचारिणी ममा म ला लिया जा । लाला भगवान दीन ('लक्ष्मी' के मम्पादक ) और प्रिय प्रनाम न वि प• *शया मिह उपाध्याय थे । यह वह समय था जब हिन्दी कवि ा नगे युग म प्रवेश कर रही थी। सरस्वती के सम्पादन ५० महावीर प्रसाद द्विवेदी । पिता का पहनान प्रताह रुचिकर नहीं लगा था। उन्होने 'कवि किकर' के छद्म नाम भी नोय श को मे उसका विरोध किया। उन्हे लगा-'लोगन कविता कीबो पलि करि जान्यो है' परन्तु उन्ही की पत्रिका सरस्वती के प्रसिद्ध कवि ५० मुकुटधर पाण्डेय नई कविता का समर्थन कर रहे थे । पाण्डेयजी के शब्दो में 'जब प्रसाद मृत्यु शैया पर थे, और जब वे उनसे मिले तो उन्होने भाव विह्वल होकर कहा था 'पाण्डेय जी आप ही नयी कविता के प्रवर्तक है। परन्तु पाण्डेय जी अपरित नेत्रो से कहते रहे कि नहीं-नही प्रसाद जी आपही उसके पुरोधा है ( पाण्डेय जी का दो वर्ष पूर्व में स्वर्गवास हुआ है)। उन्होने सदैव प्रमाद जी के काव्य सौन्दर्य की प्रणमा को है। अपने गुरु महावीर प्रसाद द्विवेदी के विचारो का समर्थन नही दिया । यह स्वीकारते हुए भी कि आचार्य ने सरस्वती मे उन्हे स्थान देकर कवि-रूप म प्रतिष्ठित किया, प्रसिद्धि दी। ____ आंसू जब प्रथम वार मामूली कागज म छा कर आया तो हमे उसके वाह्य रूप ने, जो सूची पत्र के कागज-मा था, आकर्षित नहीं किया। उसका प्रकाशन बाबू मैथिलीशरण गुप्त के चिरगांव के पेम मे हुआ था। हम और हमारे साथी उसमे प्रकाशित पंक्तियो को झम-झम कर पढ़ते थे-गारे थे। हम उसके आलंबन के विषय मे एक मत थे कि वह प्रेम-नाव्य है और उसका आलंबन प्रसाद की कोई प्रेयसी हो सकती है। काशी के प्रसिद्ध दैनिक 'आज' म आंगू की आलोचना छपी थी। कोई उसे सामान्य प्रेम कृति कहते और कोई उसमे रहस्य का आभास पाते थे । मैं उसे विशुद्ध संस्मरण पर्व : २६१