पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५५५

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और यह कह बैठ गया कि अब और सुनाने में अक्षम हूँ। वस्तुतः उनका 'आंसू' पीयूष से भी सरस प्रमाणित हुआ । X दो मास बीस दिन के कलकत्ता-- प्रवास के बाद प्रसादजी को काशी जाना पड़ा। जब वे तारकेश्वर से लौटकर कलकत्ते अश्ये तो उमी सगय उन्हे वाराणसी से बाबू उमाप्रसाद का एक पत्र मिला। पत्र पढ़कर वे बडे दुखी हुए। उन्होंने पत्र मुझे दिखाया और कहा-'देखो, मैं चार-पांच महीने यहाँ और रहना चाहता था, मेरे स्वास्थ्य में भी काफी सुधार हो गया है। पर ये लोग मुझे यहाँ न रहने देंगे।' विवश होकर मुझे काशी जाना ही पड़ेगा। प्रसादजी लखनऊ से लोट कर रुग्ण होगा और ब्रुवार जारी है यह सूचना पाकर और कुछ दिनों से उनके हाथ का कोई पत्र न पान से में भागा कागी गया। पूछा आप तो यात्रा नहीं करते गए क्यो थे गे लोट कर गभीर व्याधि ले आए नान पान मे कुछ असंयम तो नही हुआ ? खान पान में गंयम कसा म तो यहाँ से सभी सामान महीने भर का लेकर गया था यहाँ केवल माल, मटर. गोभी आदि ही खरीदी। फिर भोजन मे अमंयम से कोई यक्ष्मा ग्रस्त होता है ? परिवार मे यक्ष्मा का पुराना इतिहास तुम्हे कदाचित न मालूम हो तो गामी मे पछो मेरे दो चचेरे भाई इसी रोग से अकाल कवलित हो गए थे और तुम्हारी पहली भाभी भी तो इसी यक्ष्मा से गई। भाई साहब इस पुराने घर को कुछ नए युग मे बनवाना चाहते थे पत्थरों की गढ़ाई के काम वे प्राय कर। न के थे। उनकी पूरी योजना तो मुझे विदित नही किन्तु जब मैने चाहा कि नीचे के मंजिल मे भी बाहर खिड़कियां लगवा कर हवादार बनवाऊँ और Cross Ventiiation का प्र. : हो, घर में यक्ष्मा, कीटों ने जो स्थायी आवास बना लिया है उसे वायु और चूप । नाट दिया जाय तब भाभी ने कह दिया नही नीचे की मंजिल में खिडकी झरपे मवान को असुरक्षित कर देते है-इसलिए मैंने नीचे के कमरों को वैमा ही रहने दिया यहाँ तक कि फर्श भी कच्ची रह गई। वायु के प्रवेश के साथ उसका निगम भी जरूरी है नही तो दूषित वायु उसी में घूमती रहेगी। मेरी इच्छा थी कि आर पार आमने सामने दरवाजे जंगले लगे जिसमे वायु एक क्षण भी रुके नही–सो तो नही हो सका, मन्दूक जैसे निचला खण्ड दूषित वायु ऊपर भी फेकता रहा है। वायु और उसकी स्वच्छता का प्राणी के लिए सर्वाधिक महत्व है। वर्षा छोडकर आधे अगहन तक मै छत पर ही रहता सोता था भले ही एक दो दुलाई ओढना पड़े। क्या घर में पौष्टिक आहार की कमी थी जो Consumptive diseac हुए - केवल स्वच्छ वायु का अभाव इसका कारण रहा। चलो जो हुआ सो हुआ आगे की चिन्ता है। तुम्हारा दूसरा प्रश्न लखनऊ संस्मरण पर्व : २५१