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लिए असह्य हो उठा। मानवता के महान् कथाकार' प्रेमचंदजी की शवयात्रा चल पड़ी। घर की सीमाओं के बाहर आकर यह विलाप-कलाप मूच्छित नीरवता में बदल गया। हम सब अर्थी के पीछे धीरे-धीरे चले जा रहे थे। श्मशान तक यात्रा करने वालों की संख्या अधिक नहीं थी। थोड़े से परिजन, कुछ संवेदनशील साहित्यकार और सबके पीछे हम सब विद्यार्थी । मैं प्रसादजी के पीछे-पीछे चल रहा था। आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी उनके बराबर चल रहे थे। जब हम बनारस की गलियों से निकलने लगे, तो हम विद्यार्थियों को देखकर एक दुकानदार बोल उठा-'लगता है कोई मास्टर मरा है।' प्रसादजी के मुख पर हल्की मुस्कान की रेखा झलक उठी। वाजपेयीजी से बोले -'वाजपेयीजी, देखा यह बनारसी रंग ।' वाजपेयीजी ने अपने किसी संस्मरण में इस घटना की चर्चा की है। धीरे-धीरे शवयात्रा मणिकर्णिका घाट पहुँच गयी। सामने गंगा बह रही थी। तट पर अनेक चितायें जल रही थी। मैंने भगवान शंकर के इस सनातन श्मशान का प्रथम बार दर्शन किया था। शव चिताओं पर रखे जा रहे थे। प्रसादजी के ही निर्देशन में प्रेमचंदजी की चिता मजायी गई। जहाँ तक मुझे स्मरण है, प्रसादजी के द्वारा निर्दिष्ट अंतिम संस्कार की समस्त शास्त्र विधि पूरी की गई और प्रेमचंदजी के पुत्र ने चिता में आग दी। प्रेमचंदजी जीवनभर जिन दुःखियों के मसीहा दने रहे, सर्जना के उच्चातिउच्च शिखरों पर आरोहण करनेवाले प्रेमचंद जी के जीवन की यह परिणति ! हम लोग भी थक गये थे । प्रसादजी की 'कामायनी' की यह पंक्ति मेरे मन में गूंजने लगी मृत्यु, अरी चिर-निद्रे ! तेरा अंक हिमानी सा शीतल । ____जाड़ा आरंभ हो गया था, धूप प्रिय लगने लगी थी, छुट्टी का दिन था । मैं अकेले ही प्रसादजी के दर्शन करने घर से निकल पड़ा। पं० वाचस्पति पाठक भी उन दिनों प्रयाग में थे। मैं प्रसाद मंदिर पहुंचा, तो ज्ञात हुआ वे अपने उद्यान में हैं। देखा, उद्यान में बैठे हुए वे अंग्रेजी का एक समाचार पत्र, संभवतः लीडर पढ़ रहे थे। मुझे देखकर बड़े स्नेह से बैठने को कहा। मेरे ही समवयस्क एक युवक वहाँ पहले से ही बैठे थे। प्रसाद जी ने उनसे मेरा परिचय करवाया। कहा 'ये सर्वदानन्द जी हैं, उदीयमान कवि और कथाकार । प्रसिद्ध विद्वान् और स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता बाबू सम्पूर्णानन्द जी के पुत्र है।' मेरा परिचय भी उन्होंने दिया। हम लोग मिलकर प्रसन्न हुए। कुछ देर वे समाचार-पत्र पढ़ने में तल्लीन रहे । फिर पूछा, 'आप लोगों ने आज का समाचार पत्र पढ़ा ?' मेरा उत्तर था नहीं। मैंने पूछा क्या आज कोई विशेष समाचार है । वे बोले, विशेष ही नहीं अति विशेष समाचार है। हम लोगों की ओर समाचार-पत्र बढ़ाकर कहने लगे, 'देखो यह प्रथम पृष्ठ पर ब्रिटेन २०६ : प्रसाद वाङ्मय