पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४६४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'प्लूटाक्स लाइफ' के दो भाग थे।' इस पुस्तक का अंग्रेजी साहित्य में बड़ा महत्व है और शेक्सपियर जैसे महान नाटककार ने इसकी सहायता से अपने नाटक लिखे थे। मेरे पिता के संग्रह मे ऐसी ही अमूल्य पुस्तके थी। प्रसादजी जब कभी कोई पुस्तक मेरे पहाँ से ले जाते तो उसे पढकर वापस कर देते; किन्तु 'प्लूटाक्स लाइफ' के दोनों भाग वे अपनी आलमारी में रखे थे। मैंने कभी उसे वापस भी नहीं मांगा था। वर्षों के बाद जब उन्होने स्वयं ही उसे वापस कर दिया, तब मैंने समझा कि वे अपने देने-पावने का हिसाब बराबर कर रहे है । लखनऊ प्रदर्शनी देखकर मैं लौटा था। उसका वर्णन सुनकर प्रसादजी वहाँ जाने के लिए प्रस्तुत हुए। मुझे फिर से अपने साथ ले जाने लिए उन्होंने आग्रह किया तो मैंने कहा- सब व्यवस्था ठीक कर दूंगा। आप देख आइये ! वे अपने पुत्र के साथ लखनऊ गये। वहां से लौटने पर बीमार पडे। दिन-पर- दिन अवस्था बिगडती ही गई । डॉक्टरो ने क्षयी बतलाया। मैं बराबर मिलने जाता था। घटो बाते होती । आरम्भ मे उन्हे आशा थी कि वे निरोग हो जाएंगे, किन्तु अन्त मे हताश हो गये थे। प्रसाद अपना साहित्यिक कार्य समाप्त कर चुके थे। आगे चलकर वे कुछ ठोस पुस्तके देना चाहते थे। 'इन्द्र' पर एक बहुत खोजपूर्ण नाटक लिखने का उनका विचार था। इसके लिए वे कई वर्षों से अनुसन्धान कर रहे थे। यह उनका सर्वश्रेष्ठ नाटक होता-ऐसी उनकी धारणा थी। इसके अतिरिक्त वे एक दर्जन छोटे उपन्यास लिखनेवाले थे। 'इरावती' उसका प्रथम उदाहरण है। प्रसाद सब तरफ से अपनी स्थिति ठीक कर चुके थे। अपनी रुचि के अनुसार, १. यहाँ प्लूटास लाईफ से प्लूटार्क की जीवनी का भ्रम नही होना चाहिए। वस्तुत 'प्लूटा स-पैरेलल लाइव्स' की दो जिल्दे रही जिन्हे व्यासजी को वापस भेजने का आदेश मिला था। प्लटार्क के विषय मे ज्ञातव्य है कि उसके जन्म के सौ वर्ष पूर्व से ग्रीस रूम साम्राज्य का प्रान्त हो गया था और जब वह एथेन्स के दार्शनिक ऐमोनियस और काय चिकित्सक ओनिसाक्रिटीज़ से शिक्षा ले रहा था तब ६६ ईसवी मे नीरो सम्राट पहली बार ग्रीस आया। उसे रोम प्रवास के अनेक अवसर मिले, जिनसे वहाँ के भूगोल, इतिहास और जनजीवन का उसे पर्याप्त ज्ञान हो गया और इस 'पैरेलल लाइन्स' की-जिसमे रोम और ग्रीम के ममसामयिक महानों के समानान्तर जीवनवृत्त हैं-रचना वह कर सका। शेक्सपीयर अथवा किसी भी पश्रिमीय साहित्यकार के लिए यह चरित्रों का वह आकर ग्रन्थ है। उन्होंने इस स्रोत का उपयोग किस रूप मे किया है यही देखना वाछित रहा होगा, जिसका अब अवसर कहाँ ? १६०: प्रसाद वाङ्मय