पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४३१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

बनारसी काव्य का तार तोड़ते हुए 'कुसुम' से कहा "कुसुम जी, अब आप कुछ सुनाइये । आज आपको कोई गीत सुना जाय।" मास्टर साहब ने चुटकी ली, "परन्तु गीत आपका ही हो। मेरा मतलब है, किसी और का लिखा हुआ न हो।" शुक्लजी कुछ कहना चाहते थे कि 'कुसुम' ने गीत आरम्भ कर दिया, "मांग बैठा हूं तुम्हें हर मांग से थक के । आज फैले न रह जायें हाथ याचक के।" शुक्लजी ने तत्काल टोक दिया, "हर' शब्द तो उर्दू का शब्द है ।" विनोद बोले, "बेटा कुसुम, शुक्लजी के कहने पर इसे प्रति मांग से थक के कर दो।" ___ लास्टर साहब बोले, "क्यों कर दो? हरदम, हरसुख, हरदुख कहाँ-कहाँ हर हटा कर बोला जाता है ? हां, कुसुम, आगे सुनाओ।' शुक्लनी के गेक देने से कुसुम के उत्साह मे अवरोध उत्पन्न हो चुका था। फिर उन्होंने अन्त तक नही सुनाषा । बाब् माहब ही कहते तो सुना सकते थे। वातावरण की दृष्टि से उन्होंने 'कुसुम' से कोई अनुरोध नहीं किया। मास्टर पाहब बोले, "यह नही सुनाने तो लीजिए, मै सुनाता हूँ। ___"खाक भी जिस जिमी की पारस है, शहर मशहूर वह बनारम है।" शुक्ल जी एक 'हर' को सहन नहीं कर सके थे, इसलिए मास्टर साहब ने 'खाक, जिमी, 'शहर' और 'मशहूर' चार-चार उर्दू के शब्द लाद दिये, परन्तु उनके पास मुसकरा देने के अतिरिक्त और कोई चार। न था। ___ उन दिनों विनोद और मुच्छन दोनों कविताएं लिखते थे। उन्होंने क्या सुनाया, यह तो याद नहीं रहा परन्तु इतना अवश्य याद है कि मुच्छन की "स्मृतियों की रेल रहे चलती, यात्रा की साध रहे पलती" की 'रेल' पर अंग्रेजी का आरोप लगाकर शुक्ल जी ने कुछ कहा था जो विनोद, उग्र और मास्टर माहब के समवेत अट्टहास में डब गया। कुछ देर से तीनों की ऑखो आँखों में बाते हो रही थी, परन्तु उन बातों का अध्याहार हुआ तो अट्टहास से । मुच्छन तो सहम ही गये थे परन्तु शुक्ल जी भी इस हमी से कुछ सहमे हुए दिखाई दिये । विनोद मुझे कोहनिया कोहनिया कर कुछ सुनाने को कह ही रहे थे कि शुक्ल जी ने वातावरण में गम्भीरता लाने के लिए बाबू साहब से कुछ सुनाने की प्रार्थना की। बाबू साहब ने बिना किमी भूमिका के 'आंसू' के कुछ सद्योरचित छन्द इस प्रकार सुनाये, "इस हृदय कमल का घिरना अलि अलकों की उलझन मे । संस्मरण पर्व : १२७