पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४२९

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मांस पर लिखा हुआ एक सर्वाग सम्पन्न निबन्ध जैसा लगता तो है परन्तु गुरु की बात गुरु ही जानें ।" मैंने कहा, "यदि आंसू को जीवन के किसी एक पक्ष पर लिखा हुआ निबन्ध कहा जा सकता है तो 'कामायनी' उनके जीवन के समस्त निबन्धों का सामवायिक शोध-प्रबन्ध कही जा सकती है।" बोले, "पहां दो महीने रहो, तब इन सम्भावनाओं पर जम कर विचार कर लिखा जाय ।" शिवरात्रि के दिन बाबू साहब का अधिकतर समय शिवार्चन में ही व्यतीत होता था। सहस्र शिव-स्तोत्र-पाठ से कम क्या करते होंगे। दरियों पर चांदनियां बिछा दी जाती थीं और सब दिशाओं कोणों पर गाव तकिये लगा दिये जाते थे। ____ उस दिन में बाबू साहब के पाठ के समापन काल के अनुमान से लगभन बारह बजे पहुंचा। वहां देखा कि मास्टर साहब (गौड़ जी) और 'उय' पहले से बैठे थे। पता चला कि वहां साढ़े दस बजे ही आ पहुंचे थे । पान कचरते और कहकहे लगाते जा रहे थे ! नम पांच मिनट पीछे ही मुच्छन (शान्तिप्रिय द्विवेदी), शुक्ल जी (रामचन्द्र शुक्ल) को साथ लेकर पधारे। शुक्ल जी बहुत कम आया जाया करते थे, इसलिए आज शिवरात्रि के दिन उन्हें आया देखकर सबको थोड़ा आश्चर्य हुआ। शुक्ल जी का स्वागत देखकर मुच्छन ने उनके आने का श्रेय अपने ऊपर ओढ़ लेना चाहा, परन्तु शुक्ल जी पर अपने आत्मिक प्रभाव की डींग मारते-मारते डर कर रुक गये क्योंकि 'उग्र' की दृष्टि उनके स्वभाव के विरुद्ध कुछ गम्भीर दिखाई दी । 'कुसुम' और विनोद भी थोड़ी देर पीछे ही आ पहुँचे। तब तक मास्टर साहब और 'उग्र' अपने कहकहे न जाने कैसे रोके हुए थे। नितान्त औपचारिक से ढंग में कभी शुक्ल जी और कभी मुच्छन की हां में हां मिलाये जा रहे थे। विनोद उग्र के हमप्याला हमनिवाला थे। उन्हें देखकर 'उग्र' के कहकहों का बांध खुल गया और उनका साथ देने के लिए मास्टर साहब थे ही। ___ डेढ़ बजे बाबू साहब पीताम्बर लपेटे, नंगे कन्धों के नीचे रेशमी वेष्ठन लपेटे हुए हम लोगों में आकर बैठ गये। नौकर गंगासागर में भरकर भांग ले आया। 'उग्र' अपना पुरवा (कुल्हड़) थाम कर हनुमान आसन से तन कर बैठ गये और पांच पुरवे भांग चढ़ा चुकने के बाद बोले "इतनी स्वादिष्ट बूटी जितनी पी जाय उतनी ही कम है।" विनोद ने उन्हें छठा पुरवा भरवाने से पहले रोक दिया। शुक्ल जी के अतिरिक्त सभी ने छक कर पी। शुक्ल जी बोले, "जान पड़ता है कि इलायची की मात्रा भरपूर है और केसर, बरास तो यहां महक रहे हैं। संस्मरण पर्व : १२५