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५२४ ई० तक है) यह राजा अच्छा कवि था। 'जानकी हरण' इसका बनाया हुआ ग्रन्थ है। जानकी हरणं कर्तु रघुवंशे स्थिते सति 'कविः कुमारदासो वा रावणो वा यदिक्षमः' सोढ्ढल की बनाई हुई 'उदय-सुन्दरी-कथा' में एक श्लोक है'ख्यातः कृती कोपि च कालिदासः शुद्धा सुधास्वादुमती च यस्य वाणीमिषाच्चण्ड मरीचिगोत्र सिन्धाः परंपारमवाप कीतिः। वभूवुरन्येपि कुमारदासः'-इत्यादि। हमारा अनुमान है कि 'सिन्धोः परंपार' में कालिदास और कुमारदास के सम्बन्ध की ध्वनि है। ___ 'ज्योतिविदाभरण' को बहुत से लोग ईसवीय छठवीं शताब्दी का बना हुआ मानते हैं और हम भी कहते हैं कि वह ईसवीय पांचवीं शताब्दी के अन्त और छठवीं के प्रारम्भ होनेवाले कालिदास की कृति है। नाटककार के पीछे भिन्न एक दूसरे कालिदास के होने का और केवल काव्यकार का उसमें एक स्पष्ट प्रमाण है। 'काव्यत्रयं सुमतिकृद्र घुवंश पूर्व ततोननुकियच्छ तिकर्मवादः। ज्योतिविदाभरणकालविधानशास्त्रं श्री कालिदास कवितोहि ततोबभूव ।' इस श्लोक में छठवीं और पांचवीं शताब्दी के ज्योतिर्विदाभरणकार कालिदास अपने को केवल काव्यत्रयी का ही कर्ता मानते हैं, नाटकों का नाम नहीं लिया है। इसलिए यह दूसरे कालिदास-नृपसखा कालिदास या दीपशिखा कालिदास कहियेपांचवीं-छठवीं शताब्दी के कालिदास हैं । 'अस्तिकश्चिद्वाग विशेषः' वाली किवदन्ती भी यही सिद्ध करती है कि काव्यकार कालिदास नाटककार से भिन्न हुए। 'कालिदास' उनकी उपाधि हुई, परन्तु वास्तविक नाम क्या था ? "राजतरंगिणी' में एक 'विक्रमादित्य' का वर्णन है, जिसने प्रसन्न होकर काश्मीर देश का राज्य 'मातृगुप्त' नाम के कवि को दे दिया था। डाक्टर भाउदाजी का मन है कि यह मातृगुप्त ही कालिदाम हैं । मेरा अनुमान है कि यह मातृगुप्त कालिदास तो थे, परन्तु द्वितीय और काव्यकर्ता कालिदास थे। प्रवरसेन, मातृगप्त और विक्रमादित्य-ये परस्पर समकालीन व्यक्ति छठी शताब्दी के माने जाते हैं । महाराष्ट्री भाषा का काव्य 'सेतुबन्ध' ( वह मुह' बह) प्रवरसेन के लिए कालिदास ने बनाया था। ऊपर हम कह आये हैं कि मातृगुप्त का वही समय है जो काश्मीर में प्रवरसेन का है । इसका नाम 'तुजीन' भी पी। सम्भवतः इसी की सभा में रहकर कालिदास ने अपनी जन्मभूमि काश्मीर में यह अपनी पहली कृति बनाई, क्योंकि उस समय प्राकृत का प्रचार काश्मीर में अधिक था और यह वही प्राकृत है ४२ : प्रसाद वाङ्मय