पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४१०

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यहां आये । "मैं प्रसादजी और राय कृष्णदास के साथ पांडेपुर रवाना हुआ । काशी के बहिर्भाग में, पाडेपुर ग्राम मे राय कृष्णजी अपनी कोठी में रहते थे। राय कृष्णजी एक पुराने ढंग के रईस थे। नवाब की तरह बड़े-बड़े तकिये लगाए बैठे थे। वे बिद्याव्यसनी थे। बहुत-सी अंग्रेजी की मोटी-मोटी पुस्तके और मैगजीने उनके सामने पडी थी। राय कृष्णदास ने मेरा उनसे परिचय कराते हुए कहा-"ये जयशंकर प्रसाद जी के घनिष्ट मित्र हैं। इन्होने हिन्दी के बहुत-से समाचार-पत्रों मे काम किया है और कई पुस्तके भी लिखी है।" राय कृष्णजी ने कहा कि "हाँ, हमने इनका नाम सुना है।" तब राय कृष्णदास ने कहा-"ये दैनिक 'भारत' में काम करना चाहते हैं।" राय कृष्णजी ने कहा कि "१७ सितम्बर को हमारी ( लीडर प्रेस मे ) मीटिंग होनेवाली है। ये प्रार्थना-पत्र दे दे।" इसके बाद राय कृष्णजी, प्रसादजी से बाते करने लगे और रात के लगभग दस बजे तक बाते करते रहे। उन्होने काशी-नरेश महराज ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह के बारे मे एक बडी मनोरंजक कहानी सुनायी।" रात को लगभग ११ बजे घर पहुंचने के बाद प्रसादजी ने मुझसे कहा-"अभी कुछ दिन ठहर जाओ और चेयरमैन की मीटिंग का नतीजा देख लो। आशा है, तुम्हे 'भारत' मे काम मिल जाएगा।" मुझे उनसे यह भी मालूम हुआ कि हिन्दी के सुविख्यात लेखक श्री शिवपूजन सहाय भी 'भारत' में काम करना चाहते थे। दूसरे दिन राय कृष्णदास जी के यहाँ जब श्री शिवपूजन सहायजी से मेरी भेट हुई तो उन्होने अनिच्छापूर्वक कहा-"नही, हम वहां काम नही करेगे। दैनिक पत्र का काम बड़े झंझट का होता है । आप ही जाइये ।" दो दिन के बाद मैं प्रातःकाल 'लीडर' प्रेस मे प० कृष्णराम मेहता के वासस्थान पर न्यूजपेपर्स लिमिटेड के चेयरमैन ( अध्यक्ष ) राय कृष्णजी से मिला ।" दैनिक 'भारत' अभी प्रकाशित होना प्रारम्भ नही हुआ था। उसके सम्पादक श्री केशवदेव शर्मा पहले 'लीडर' के सहकारी सम्पादक थे।"मैं शर्माजी से नित्य ही मिलता था। दो-तीन दिन के बाद उनसे मुझे सूचना मिली कि "आपकी नियुक्ति प्रायः निश्चित है।" और दूसरे दिन जब फिर मैं 'लीडर' प्रेस गया तो एक मद्रासी उग-प्रबंधक श्री ऐयर ने मुझे एक लिफाफा दिया जो दैनिक 'भारत' के 'सम्पादकीय विभाग में काम करने के लिए नियुक्ति-पत्र था। १०६ : प्रसाद वाङ्मय