पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

चंद्रगुप्त ने दक्षिण के उन स्वतंत्र शकों को पराजित करने के लिये जिस उपाय का अवलंबन किया था-उसका उल्लेख 'कथा सरित्सागर' की चौथी तरंग से भी प्रकट है। (अवलोक्य 'ध्र वस्वामिनी' एकांकी 'प्रसाद' । सं०) __ मथुरा के शक-शासकों का नाश, जो शकों की पहली शाखा के थे, किसने किया- इस संबंध में इतिहास चुप है। राजबुल, षोडाश और खरओष्ठ नाम के तीन शक नरेशों के ईसा पूर्व पहली शताब्दी में मथुरा पर शासन करने का उल्लेख स्पष्ट मिलता है। षोडाश ने आर्य-शासक रामदत्त से दिल्ली और मथुरा छीनकर शक-राज्य प्रतिष्ठित किया था। 'राजावली' में इसका उल्लेख है कि विक्रमादित्य ने पहाड़ी राजा शुकवंत से दिल्ली का उद्धार किया। शुकवंत संभवतः विदेशी षोडाश का ही विकृत नाम हैं, क्योंकि ईसा की पहली शताब्दी के बाद उस प्रांत में उन शकों का शासन निर्मूल हो गया। इन लोगों को पराजित करने वाला वही विक्रमा दित्य हो सकता है जो ईसवीय पहली शताब्दी का हो। जैसलमेर के इतिहास में भट्टियों का वर्णन यहां बड़े काम का है। उन्होंने लिखा है कि विक्रमीय संवत ७२ में गजनी-पति गज का पुत्र शालिवाहन मध्य एशिया की क्रांतियों से विताड़ित होकर भारतवर्ष चला आया, और उसने पंजाब में शालिवाहनपुर (शालपुर या शाकल) नाम की राजधानी बसाई। स्मिथ ने जिस दूसरी शक-शाखा का उल्लेख किया है, उसके समय से भट्ठियों के इस शालिवाहन का समय ठीक-ठीक मिल जाता है। शकों के दूसरे अभियान का नेता वही शालि. वाहन था, जिसके संबंध में 'भविष्य पुराण' में लिखा है एतस्मिन्नतरे तत्र शालिवाहन भूपतिः। विक्रमादित्य पौत्रस्य पितृराज्यं गृहीतवान् ॥ कुछ लोग 'पौत्रश्च' अशुद्ध पाठ के द्वारा भ्रान्त अर्थ निकालते हैं, जो असम्बद्ध है। विक्रमादित्य के पौत्र का राज्य अपहरण करनेवाला शालिवाहन विदेशी था। प्रबन्ध चिन्तामणि में भी शालिवाहन को नागवंशीय लिखा है । गजनी से आया हुआ शालिवाहन एक शक था। सम्भवतः उसी ने शक-राज्य की स्थापना की और शकसंवत् का प्रचार किया। इसके पिता के ऊपर जिस खुरासान के फरीदशाह के आक्रमण की बात कही जाती है; वह पार्थियानरेश 'मिथाडोटस' का पुत्र 'फराटस' द्वितीय रहा होगा। उस काल में युवेची, पाथियन और शकों में भयानक संघर्ष चल रहा था। गजनी के शकों को भी इसी कारण अपना देश छोड़कर रावी एवं चिनाव के बीच में 'शाकल' बसाना पड़ा। मिथाडोटस द्वितीय आदि के शासनकाल में भारतवर्ष का उत्तर-पश्चिमीय भू-भाग बहुत दिनों तक इन्हीं शकों के अधिकार में रहा। कभी पापियन, कभी शक और कभी युवेची जाति की प्रधानता हो जाती थी। उसी समय स्कंदगुप्त विक्रमादित्य-परिचय : ३१