- गर पिता श्री गुरुसहाय के निधनोपगन्त उभय पुत्रा श्री गणपति एव श्री गोवर्द्धन मे परस्पर सौहार्द का अभाव होता गया। तब तक ये लोग २४ किता मकानों और हरहुआ स्थित एक बाग के स्वामी हो चुके थे। श्री गणपति साहु को, जिनका निधन चैत्र शु० सप्तमी स० १८१८ को हुआ, एक मात्र पुत्र श्री शिवरत्न साहु थे वे टेढीनीम - होजकटोरा छोड कर गोवर्द्धनसराय में बम गए और शिवालय बनवाकर शिवरत्नेश्वर लिग की स्थापना की । सवत् १८६१ मे अपने भाई श्री गणपति साहु का निधन होने के पश्चात् श्री गोवर्द्धन साहु ने भतीजे से सवत् १८६२ म बटवारा कर लिया जिसकी अन्तिम स्वीकृति ई. १८७५ मे हाईकोर्ट द्वाग भी हो गई। इस विग्रह के मूल मे हौजकटोरा की दूशन का उन्लेग्व उक्त फैमले में स्पष्ट है कोई साम्पत्तिक विवाद नही था। किन्तु गोलादीनानाथ के तुल्य एम गोला स्थापित करने के उद्देश्य से जो दो सौ गज जमीन टीव उमी मे मटी नी गई थी वह नही हो सका न तो बाग हरहुआ का विस्तार ही। मन १८५७ मे उन बाग लिया जा चुगा था वह लखनउ-बनारस क मार्ग पर स्थित हे गमय व.। भी गोरी फौज से संघर्ष हुआ और एक गदर सैनिक वहाँ आहत हार गिरा ग्मेि श्री गणपति साहु अपने नाग म ल जाए और श्रपा की मिन्न दनना घर रत्नयाव हो चुका था कि उसकी जीवन-रक्षा न हो सकी अन्त म उम्र का भ गोगा न मेरी हिफाजत की ग्यदा हाफिज अब मै चला जो यह गरी पडाबीन बनोर यादगार के रग्वना इसने मैक्डो पिगिया को मौत की घाना है य खुदा इन बच्चो को खुशहाल रख -कहकर मैनिक ने दम तोट दिया। वह काबीन अन्य कसवीनो के मध्य हमारे यहाँ बटे आदर मे रखी जानी थी। किन्तु जब :८७८ मे आर्स ऐक्ट लागू हुआ तब मेरे पितामह ने लाइसेंस लेर अमलर रखना म्बीमार न किया और पूज्य पिताश्री के कथनानुमार शिवालय वाने प म गोलह पटानी छोट दी गई । उम गदर वाल के पूर्व की हवलिया था बडे भवनो के मुग्य द्वार पर प्रायः कडाबीन की मार की तिरकगी बनी रहती थो ओर भी पूर्व काल म इमके दारा तीर भी छोडे जा सकते थे इसीलिए निरकमी' ना एक वार तुपरक मत्त्व था। आज भी हमारे प्राचीन सदर दरवाजे के ऊपर तीन तिरव सिगं और कुछ हट कर एक चौड़ी तिरकमी बनी है। पारिवारिक विग्रह के कारण गोत्रा दीनानाथ के समकक्ष गोला बनाने की बात स्थगित रह गई, हरहुआ वे बाग के विस्तार मे कोई रुचि न रही और होजकटोरा की दूकान तथा अन्य सम्पनि श्री गोवईन के भाग मे चली गई। श्री शिवरत्न साहु ने गोवर्द्धन सराय में स्थायी आवास और शिवालय बना लिया, व्यवसाय चौक कोहना एवम् नारियल बाजार से होने लगा, साथ ही होजकटोरा का व्यवमाय श्री गोवर्द्धन साहु संभाल न पाये क्योकि पिता के कनिष्ठ पुत्र होने से इन्छाओ की पूर्ति ही उनको सक्रियता का क्षेत्र बना था माथ ही मतभेद श्री कुलदेवतायै नमः १८७
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