. निवास का रसा के उस पार होना प्रमाणित है । सुमेरु प्रदेश से हटाये जा कर असुर संप्रदायवालों ने वरुण की नगरी सुषा (Sussa), इलाम की राजधानी के पास ही के प्रदेश को फिर से सुमेर नाम दिया। और Land of noiri ही आर्य-साहित्य में प्रसिद्ध निरय (असीरिया का ऊपरी प्रदेश) रहा हो तो क्या आश्चर्य है--"असुर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृताः" (ईशोपनिषत् -३)। छांदोग्य की विरोचन और इंद्र की ज्ञान प्राप्ति वाली कथा का तात्पर्य मनोरंजक है। स्पष्ट है कि देवों के नायक इंद्र आत्मवाद तक पहुंचे किंतु प्रजापति के कहने पर कि 'जलपात्र में देखो' --केवल अपना मुह देखकर असुर नायक विरोचन देहात्म- वादी हुए। एवंविध असुर शरीर को मुख्य मानने लगे तथा उनमें मृत शरीर को मिक्षा, अलंकार से सजाकर सुरक्षित रखने की प्रथा चली। ईजिप्ट के ममी निर्माण के मूल में छांदोग्य की इस कथा की छाया है अंततः असीरिया की धार्मिक सभ्यता के संबंध में Myths of•Babylonia and Assyria के लेखक को लिखना पड़ा- "संभव है कि असीरिया के धार्मिक संस्कारों का दूसरा उद्गम फारस हो, क्योंकि असीरिया के अमर भी ठीक फारस के अहुरमज्द के समान पंखदार चक्र में राजा के ऊपर छाया किये हुए दिखाई देते है। पवित्र वृक्ष भी पारसियों की 'माइथोलोजी' के अनुसार ही असीरिया मे सम्मानित था। यहां तक कि प्राचीन असीरिया के राजाओं के नाम भी सेमेटिक नही थे।" असीरिया की सभ्यता सुमेरिया और बेबिलोन की सभ्यता से पीछे १३००- १४०० बी० सी० की मानी जाती है। इसलिए इन विद्वानों ने उस पर ईरानी १. इसी मंत्र के उत्तरार्द्ध- "ता स्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनः" (३)-के 'आत्महनो जनाः' में असुर्या=असीरिया में जाने वाले मूल असुर जाति के उन जनों की एक सहज परिभाषा भी अनुमेय है --जो इन्द्र के आत्मवाद के विरोधी और वरुणोपामना की प्राचीन परंपरा के कट्टर अनुयायी रहे। आत्ममत्ता के वे प्रतिष इन्द्रानुयायिनी परंपरा मे- "आत्महनो जना" के रूप में स्मर्तव्य हुए जिनका निवेश असुर्या (असीरिया) विगतार्थ वैचारिक परंपरा के अंधकार से आच्छादित और आत्मवाद के अभिनव आलोक से सर्वथा रहित होने से यहां 'अंधेन तमसावृता.' कहा गया। (सं०) R. Another possible souree of cultural influence is Persia. The Supreme God Ahura Mazda (Ormazd) was, as has been indicated, represented, like Ashur, hovering over the King's head, enclosed in a winged disk or wheel, and the sacred tree figured in persian Mythology. (p. 355, Myths of Babylonia). प्राचीन आर्यावर्त : १४७
पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२४७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।